आबकारी नीति मामला: सिसोदिया के घर से निकली सीबीआई की टीम, 14 घंटे चली छानबीन

नई दिल्ली: आबकारी मामले में 14 घंटे की छापेमारी के बाद दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के आवास से सीबीआई अधिकारी रवाना हुए। सीबीआई के 18 अधिकारी चार गाड़ियों में करीब 14 घंटे की छापेमारी के बाद निकले। हालांकि मनीष सिसोदिया सीबीआई की गाड़ी में मौजूद नहीं थे। सीबीआई उन्हें अपने साथ लेकर नहीं गई है।

एक्साइज घोटाला मामले में दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत 15 लोगों के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज कर किया गया है। इस मामले में मनीष सिसोदिया को आरोपी नंबर-एक बनाया गया है। सीबीआई की ओर से दर्ज किए गए एफआईआर में आबकारी अधिकारियों, शराब कंपनी के अधिकारियों, डीलरों के साथ-साथ अज्ञात लोक सेवकों और निजी व्यक्तियों को भी आरोपी बनाया गया है।

एफआईआर में शामिल हैं ये नाम
सीबीआई की ओर से दर्ज की गई एफआईआर में मनीष सिसोदिया (दिल्ली के उपमुख्यमंत्री), अरवा गोपी कृष्णा (तत्कालीन आयुक्त आबकारी)), आनंद तिवारी (तत्कालीन उपायुक्त आबकारी), पंकज भटनागर (सहायक आयुक्त आबकारी), विजय नायर (पूर्व सीईओ, ओनली मच लाउडर), एक मनोरंजन और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी, मनोज राय (पर्नोड रिकार्ड के पूर्व कर्मचारी) अमनदीप ढल (निदेशक, ब्रिंडको सेल्स प्राइवेट लिमिटेड), समीर महेंद्रू (प्रबंध निदेशक, इंडोस्पिरिट ग्रुप) के नाम का जिक्र है।

इनके अलावा प्राथमिकी में अमित अरोड़ा (निदेशक, बडी रिटेल प्राइवेट लिमिटेड), दिनेश अरोड़ा, महादेव शराब, सनी मारवाह, अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता, अरुण रामचंद्र पिला और अर्जुन पांडे का नाम भी शामिल है। एफआईआर में अन्य जाने-माने लोकसेवकों और जनता का भी उल्लेख किया गया है।

इस बीच, सीबीआई के एक अधिकारी के अनुसार सात राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में तलाशी ली गई, जिसमें दिल्ली के पूर्व आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्ण के परिसर भी शामिल हैं, जिनके कार्यकाल में संशोधित आबकारी नीति को मंजूरी दी गई थी।

दरअसल, दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने मुख्य सचिव के रिपोर्ट के आधार पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। दो महीने पहले मुख्य सचिव की रिपोर्ट में GNCTD एक्ट 1991, ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993, दिल्ली एक्साइज एक्ट 2009 और दिल्ली एक्साइज रूल्स 2010 के नियमों के उल्लंघन की पुष्टि की थी। दिल्ली के डिप्टी सीएम पर आरोप लगा कि शराब के लाइसेंस देने में नियमों की अनदेखी की गई थी। टेंडर के बाद शराब ठेकेदारों के 144 करोड़ रुपए भी माफ कर दिए गए।

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