किसानों की व्यावहारिक कठिनाइयां

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है कि पूरे देश में 48 लाख 96 हजार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 4 करोड़ 32 लाख टन गेहूं अब तक खरीदा जा चुका है जिसके ऐवज में किसानों को 85,356 करोड़ रुपयों का भुगतान किया गया है जबकि पिछले रबी सीजन में 3 करोड़ 89 टन गेहूं की सरकारी ख़रीद हुई थी। कृषि मंत्री ने यह भी बताया कि गेहूं के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 1 करोड़ 8 हजार टन तिलहन की भी खरीद की जा चुकी है। सरकारी एजेंसियों के माध्यम से मूंग, मसूर, उड़द, अरहर, मूंगफली, सूरजमुखी, सरसों, सोयाबीन की भी खरीद की जा रही है।

कृषि मंत्री श्री तोमर ने यह भी कहा कि ये सभी खरीद एमएसपी आधार पर हुई है। आंदोलनकारी किसान नेताओं का आरोप कतई निराधार है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली खत्म कर देगी।

इसमें संदेह नहीं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद से किसानों को लाभ हुआ है किंतु 75 वर्षों से चली आ रही नौकरशाही के तरीकों और तिकड़मों से किसान आज भी परेशान है। खरीद केंद्रों पर जो घपले या कठिनाइयां होती हैं, उनके निराकरण की ओर किसका ध्यान है? प्रथम श्रेणी के अनाज को दोयम का बताकर या भीगा हुआ बता कर किसानों का शोषण किये जाने की घटनायें प्रकाश में आती रहती हैं।
मुजफ्फरनगर का ही उदाहरण लें। गेहूं खरीद की अंतिम तारीख 20 जून को तौल व पर्ची बनाने में जानबूझ कर देरी की गई तो किसान बिलबिला उठे।

ऐसे में किसानों की मदद कौन करे? यूनियन वाले तो ‘चोर’ और चोर की मां को मारने के लिए 2024 तक बॉर्डर पर पड़े रहेंगे और सत्ताधारियों को किसान की सुध लेने की फुर्सत नहीं! यहां मुजफ्फरनगर जिला व शहर कांग्रेस के पदाधिकारियों की प्रशंसा करनी पड़ेगी जिन्होंने नवीन मंडी स्थल पहुंचकर किसानों की परेशानियां दूर कराई।

इस प्रकार की समस्याओं से किसान को पूरे साल जूझना पड़ता है। किसान को सिर्फ ‘अन्नदाता’ कहकर उसकी प्रशंसा करने मात्र से किसान को राहत पहुंचने वाली नहीं। सरकारें नीतिगत निर्णय ले सकती हैं, उनको अमल में लाने के लिये भी उपाय होने चाहियें किंतु यह काम राजनीतिक चौपड़ बिछाने से संभव नहीं है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here