नकद में ली गई फास्टैग फीस, एनएचएआई पर ठोका गया 25000 रुपये का जुर्माना

मदुरै में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को एक यूजर से नकद में फास्टैग फीस लेने के लिए 25,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। फास्टैग सिस्टम उसके वाहन में लगे टैग को पहचानने में नाकाम रहा था।

आयोग ने अध्यक्ष एम पीरवी पेरूमल और सदस्य पी शनमुगाप्रिया की अध्यक्षता में एनएचएआई को शिकायतकर्ता को अतिरिक्त 10,000 का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।याचिकाकर्ता मार्टिन डेविड, अमेरिकन कॉलेज के वाइस-प्रिंसिपल हैं। सितंबर 2020 में वे किसी आधिकारिक काम पर शिवकासी जा रहे थे और कप्पलूर टोल गेट से गुजर रहे थे। जहां सिस्टम उनके फास्टैग का पता लगाने में नाकाम रहा। डेविड के वकील दिनेश कुमार ने कहा, भले ही उनके फास्टैग खाते में पर्याप्त धनराशि थी, टोल प्लाजा कर्मचारियों ने उन्हें नकद भुगतान करने के लिए मजबूर किया। उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें इंतजार करवाया। 

उसी टोल गेट से शिवकासी से मदुरै लौटते समय, याचिकाकर्ता को फिर से उसी परेशानी का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके कि उन्होंने फास्टैग जारी करने वाली बैंक एसबीआई की हेल्पलाइन को इस समस्या के बारे में बात दिया था।

इस मामले पर एनएचएआई का कहना था कि टोल टैक्स वसूली के लिए टोल गेट का रखरखाव एक निजी संस्था द्वारा किया जाता था। साथ ही उसने सर्विस में कमी के लिए एसबीआई को दोषी ठहराया। एनएचएआई ने इस दावे को भी खारिज कर दिया कि टोल प्लाजा कर्मचारियों ने याचिकाकर्ता से झगड़ा किया। जबकि एसबीआई ने कहा कि यह समस्या एनएचएआई के स्कैनर की खराबी के कारण हुआ था, न कि उनके कारण।

पक्षों के तर्कों पर विचार करने के बाद, आयोग के अध्यक्ष एम पीरवी पेरूमल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास पर्याप्त शेष राशि के साथ एक वैध और एफिशिएंट फास्टैग था। आयोग ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की अधिसूचना का हवाला दिया कि अगर किसी कार का फास्टैग वैध और फंक्शनल है। लेकिन टोल प्लाजा पर स्कैनरों द्वारा इसका पता नहीं लगाया जाता है, तो वाहन मालिक को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है।

ऐसे मामलों में, वाहन मालिक को टोल का भुगतान करने से छूट दी जाती है। और वाहन निःशुल्क रूप से प्लाजा से बाहर निकल सकते हैं।आयोग ने कहा,  “इस मामले में, याचिकाकर्ता को बिना भुगतान के जाने दिया जाना चाहिए था। लेकिन एनएचएआई कर्मचारियों ने अधिसूचना का उल्लंघन किया और शुल्क जमा किया, और शिकायत दर्ज कराने पर याचिकाकर्ता के साथ दुर्व्यवहार भी किया।

कर्मचारियों ने शिकायतकर्ता को मानसिक परेशानी और क्षोभ पहुंचाया। इसके अलावा, इसके लिए एनएचएआई उत्तरदायी है क्योंकि कर्मचारियों और/या ठेकेदार को उसने नियुक्त किया था।”आयोग ने एसबीआई सहित अन्य प्रतिवादियों की लापरवाही को खारिज कर दिया। और एनएचएआई को याचिकाकर्ता को हुए मानसिक पीड़ा और दर्द के लिए 25,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

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