ज्ञानी हत्याकांड: 10 साल बाद आया फैसला, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुधीर सहित सभी बरी

अलीगढ़ में टप्पल के गांव जहानगढ़ के बहुचर्चित भाजपा नेता और हिस्ट्रीशीटर ज्ञानचंद्र शर्मा उर्फ ज्ञानी हत्याकांड में 29 मार्च को फैसला आ गया। दस वर्ष पुराने इस हत्याकांड में आरोपी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुधीर चौधरी सहित सभी नौ आरोपियों को बरी कर दिया गया। सत्र न्यायालय में हुए ट्रायल में पुलिस की सियासी रंजिश और शूटरों से जुड़ी कहानी आरोप साबित न कर सकी। बता दें कि उस समय बसपा से जिला पंचायत अध्यक्ष और वर्तमान में भाजपाई सुधीर चौधरी पर इस हत्याकांड की साजिश का आरोप था। फैसला आने के बाद बचाव पक्ष के चेहरों पर खुशी देखी गई, जबकि वादी पक्ष मायूसी के साथ घर लौट गया।

यह है मामला
बचाव पक्ष के अधिवक्ता नीरज चौहान व चौ.बलवीर सिंह के अनुसार ये घटना 25 अगस्त 2014 की देर शाम की है। जहानगढ़ प्रधानपति व टप्पल सघन सहकारी समिति अध्यक्ष ज्ञानचंद्र शर्मा उर्फ ज्ञानी अपने कुछ साथियों संग बोलेरो में सवार होकर टप्पल से गांव आ रहे थे। तभी गांव के बाहर तिराहे पर करीब साढ़े नौ दस बजे के मध्य उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस दौरान गाड़ी चला रहा जैदपुरा का राजू भी जख्मी हुआ। दोनों को आनन-फानन एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज लाया गया, जहां ज्ञानी को मृत घोषित कर दिया गया।

इस घटना का मुकदमा ज्ञानी के बड़े भाई अमरचंद्र शर्मा ने चार-पांच अज्ञात आरोपियों पर दर्ज कराया। जिसमें उन्होंने कहा कि फायरिंग की आवाज पर जब वे घटनास्थल पर आए तो चार-पांच हमलावर हाथों में हथियार लहराते हुए हत्या कर भाग रहे थे। तहरीर में इलाके की राजनीतिक रंजिश में भाई की हत्या का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उनके भाई से कुछ लोग राजनीतिक द्वेष रखते थे। इसी रंजिश में ये हत्या हुई है।बचाव पक्ष के अनुसार पुलिस ने तब बसपा के बैनर तले सियासत कर रहे तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष सुधीर चौधरी (अब भाजपा में सक्रिय) निवासी ताहरपुर टप्पल को साजिश का आरोपी बनाते हुए घटना का खुलासा किया। कहा कि सुधीर के द्वारा ये हत्या शूटरों से कराई गई है। क्रमवार सुधीर सहित नौ नाम उजागर किए। कुछ आरोपी गिरफ्तार किए गए और कुछ ने कोर्ट में सरेंडर किया। लंबी जद्दोजहद के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष रहते सुधीर को भी जेल जाना पड़ा। पुलिस ने तीन किस्त में सभी पर चार्जशीट दायर की। न्यायालय में सत्र परीक्षण शुरू हुआ। 
दीवानी कचहरी में ज्ञानी हत्याकांड में बरी हुए पंकज को जेल ले जाती पुलिस
बचाव पक्ष से प्रताप सिंह राघव, नीरज चौहान, चौ.बलवीर सिंह, राम गोपाल गौतम, इस्माइल खां आदि अधिवक्ता पैरवी कर रहे थे। सभी ने पुलिस की कहानी पर सवाल उठाते हुए तर्क पेश किए। घटना के चश्मदीद गवाह राजू की गवाही अहम मानी गई। जिसने यह कहा कि कोई दो लोग रास्ते से ज्ञानी ने गाड़ी में बैठाए थे। उन्हीं ने गोली चलाई, जिन्हें वह पहचानता नहीं है, जबकि अदालत में हाजिर किसी आरोपी के मौके पर होने से इंकार कर दिया। साथ में अन्य गवाहों की कहानी में मिलान न होने पर बचाव पक्ष ने बल दिया। इन्हीं तमाम आधार पर 29 मार्च को न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए सभी को बरी कर दिया।

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