जिला अस्पताल में दलाली की नौटंकी


2 नवम्बर: मुज़फ्फरनगर के सरकारी अस्पताल (जिसका नाम सरकारी कागजों में स्वामी कल्याणदेव जिला चिकित्सालय दर्ज है) में दो नवंबर को अजीब नजारा देखने को मिला। सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आये मरीजों या उनके तीमारदारों से दलाली लेने वाली एक महिला को पकड़ भी लिया गया और फिर छोड़ भी दिया गया।

दलाली खाने वाली महिला को पैसा देने वाले मरीज़ के पहचानने के बाद पकड़ लिया गया। शोर-शराबा होने पर वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. योगेंद्र तिरखा ने फोन कर पुलिस को बुला लिया। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष डॉ. राजीव लाम्बा का कहना है कि यह महिला पहले भी कई बार पकड़ी जा चुकी है और हर बार यह कह कर छूट जाती है कि फिर कभी मरीजों को नहीं ठगूंगी। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. दिव्या वर्मा का कहना है कि इस तरह के और भी कई लोग अस्पताल में घूमकर मरीजों को गुमराह करते हैं। मरीजों से कहा गया है कि वे ऐसे लोगों की शिकायत तुरन्त उच्च अधिकारियों व पुलिस से करें।

वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राकेश कुमार ने इस घटना के संबंध में बताया कि दलाली के आरोप में एक महिला पकड़ी गई थी। उसने मरीज को पैसे वापस कर दिये हैं। अब चिकित्सालय आने वाले मरीजों को अस्पताल में नोटिस लगाकर दलालों से सावधान रहने को कहा गया है।

अस्पताल के दलाली प्रकरण में कुछ प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। जब यह महिला पहले भी कई बार पकड़ी व छोड़ी गई, और अस्पताल में पुलिस भी पहुंच गई तब किन लोगों के दबाव में और क्यूं उसे छोड़ा गया? उसे पुलिस के सुपुर्द क्यूँ नहीं किया गया ?

मुख्य प्रश्न यह है कि अस्पताल में दलाली की नौबत ही क्यूं आती है और दलाल निःसंकोच हो कर अस्पताल में विचरण कैसे करते हैं? जब आसानी से वहां इलाज उपलब्ध हो, सभी प्रकार की जांचें व परीक्षण सुलभ हों और चिकित्सक बीमारी का निदान करने को सदा तत्पर रहें तो मरीज़ या तीमारदार दलालों की सहायता क्यूँ लेगा ? जिला अस्पताल में चिकित्सकों की संख्या कम हो सकती है। पैथौलॉजी, एक्स-रे आदि के लिए तकनीशियन कम हो सकते हैं। राज्य के केन्द्रीय स्टोर से दवाइयों व इंजेक्शनों की आपूर्ति कम व समय पर न होने की शिकायतें हो सकती हैं।

इन सब सवालों के जवाब अस्पताल के अधिकारी नहीं देंगे। जन प्रतिनिधियों का कर्त्तव्य बनता है कि वे अस्पताल के हालातों का जायजा लें। ऐसा नहीं कि मंत्री, विधायक या नेताजी के फोन पर डॉक्टर भागे चले आएं और जनप्रतिनिधि मान लें कि अस्पताल में सब कुछ ठीकठाक है।

गोविन्द वर्मा

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