लंबित मुकदमों का अम्बार !

केन्द्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने 3 फरवरी 2023 को एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि देश की निचली अदालतों में 6 लाख 7 हजार मुकदमें 20 वर्षों से अनिर्णित पड़े हैं। इसी प्रकार देश की हाईकोर्टों में 2,94,547 मुकदमें बिना फैसले के पड़े हैं। कानून मंत्री ने कहा है कि जजों की कमी के कारण ही फैसलों में विलम्ब नहीं होता, इस के अन्य कारण भी हैं। यदि अधीनस्थ न्यायालयों, हाईकोर्टों व सुप्रीम कोर्ट के कुल लम्बित मुकदमों को गिना जाए तो उनकी संख्या करोड़ों तक पहुंचेंगी।

लंबित मुकदमों को निपटाने या त्वरित न्याय प्रदान कराने के लिए प्राथमिकता से कार्य करने और माहौल बनाने की जरूरत है। कानून मंत्री ने जताया कि हमने 8 वर्षों में हाईकोर्टों के 202 नये जज नियुक्त किये हैं। नये न्यायालय भी स्थापित किये गए हैं। लोक अदालतों के जरिये सामूहिक निर्णय भी किये जा रहे हैं। पेंचीदा स्थिति यह है कि जितने पुराने वाद निर्णित होते हैं, उनसे अधिक नये मुकदमे दायर हो जाते हैं।

त्वरित न्याय में सबसे बड़ी बाधा वाद को लटकाये रहने की मनोवृत्ति से होती है। अभी 3 फरवरी को प्रयागराज में इलाहाबाद हाईकोर्ट के बार एसोसिएशन की 150 वीं जयंती पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका को त्वरित न्याय के लिए मिलकर काम करना चाहिए लेकिन उनकी नेक सलाह को कौन मानेगा?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस मंजू रानी चौहान ने सादिम व दो अन्य लोगों की अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान 2 फरवरी, 2023 को अपने आदेश में जो कहा वह कार्यपालिका के रवैये को दर्शाता है। संबंधित केस की पत्रावली पेश न किये जाने पर माननीय न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि सरकार के सहयोग के बगैर बिना देरी किये त्वरित न्याय दे पाना सम्भव नहीं है। फाइल मौजूद न होने के कारण सुनवाई टलवाने का फैशन हो गया है। सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह नागरिक अधिकारों की रक्षा करें और संवैधानिक संस्था के प्रति जन विश्वास बढ़ाये। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि अधिकारियों की ढिलाई से अदालत की सुनवाई स्थगित हुई तो अधिकारी पर भारी जुर्माना लगेगा।

कार्यपालिका, न्यायपालिका, बैंच और बार तथा नेता, जस्टिस डिलेड, जस्टिस डिनाइड की खूब बात करते हैं लेकिन अदालतों में मुकदमों का अम्बार बढ़ता ही जाता है। सुलभ व त्वरित न्याय के लिए ठोस कदम उठाने का और कौन सा समय आयेगा?

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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