जरूरत पड़ी तो प्राकृतिक खेती प्रोत्साहन बोर्ड भी बनेगा- सीएम योगी

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धरती की रक्षा करनी है तो प्राकृतिक खेती की तरफ जाना ही होगा। इसके लिए आवश्यकता पड़ेगी तो बोर्ड गठन की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा। पीएम की मंशा के अनुरूप खेती को विषमुक्त करना है। सीएम ‘उप्र सतत एवं समान विकास की ओर’ विषय पर आयोजित कान्क्लेव को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने भी कहा कि यदि देश के पूरे कृषि भू-भाग को बंजर होने से रोकना है तो सभी किसानों को प्राकृतिक खेती अपनानी होगी।

विश्व बैंक एवं एमएसएमई के तत्वावधान में सोमवार को लखनऊ के एक होटल में कान्क्लेव का आयोजन किया गया। इस मौके पर सीएम योगी ने कहा कि इस देश में ऋषि और कृषि एक दूसरे से जुड़े थे। गोवंश आधार था। अब फिर से उसी पर जाना होगा। कम लागत में केवल प्राकृतिक खेती ही किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ा सकती है। 

कहा कि गंगा के दोनों तटों पर पांच पांच किमी तक खास तौर से तटवर्ती 27 और बुंदेलखंड के सात यानी कुल 34 जिलों में इस खेती के लिए अभियान शुरू हो चुका है। देश में कृषि पहले नंबर पर और एमएसएमई दूसरे नंबर पर है। आज प्रदेश में 90 लाख एमएमएमई इकाइयां हैं। यदि दोनों एक दूसरे से बेहतर तरीकेसे जुड़ जाएं तो सूरत बदल जाएगी। इसका प्रयास भी चल रहा है।

इस मौके पर गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि यूएनओ की रिपोर्ट कहती है कि यदि इसी तरह से खेती में रसायनों का प्रयोग होता रहा तो आने वाले साठ साल में खेती की जमीन पूरी बंजर, फर्श जैसी हो जाएगी। इससे बचना है तो प्राकृतिक खेती को अपनाना होगा। कान्क्लेव में विश्व बैंक साउथ एशिया रीजन के प्रैक्टिस मैनेजर ओलिवर ब्रेड्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं।

कालानमक और गुड़ बेहतर उदाहरण

सीएम ने कहा कि एक जिला एक उत्पाद में ऐसे उत्पाद की ब्रांडिंग, मार्केट, तकनीक सभी देने का सरकार प्रयास कर रही है। सिद्घार्थ नगर का कालानमक चावल, मुजफ्फरनगर का गुड़ इसका बड़ा उदाहरण है। सुल्तानपुर के एक किसान ने ड्रेगन फ्रूट तक उगाया तो झांसी की एक बेटी ने छत पर स्ट्राबेरी उगाकर बड़ा लाभ कमाया। ये सब विविधीकरण है जिस पर काम करना होगा। अब वहां एक एकड़ में दस लाख रुपये तक का उत्पादन किया जा रहा है। महिला स्वयं सहायता समूहों को सरकार बढ़ावा दे रही है। वह भी इस अभियान से जुड़ें। बुंदेलखंड की एक मिल्क कंपनी ने स्वावलंबन का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है।

यह है जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का फर्क

गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने विस्तार से जैविक यानी आर्गेनिक  और प्राकृतिक खेती का फर्क बताया। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती को तो बिल्कुल ही नहीं करना है। जैविक खेती का भी कोई लाभ नहीं। केवल प्राकृतिक खेती करनी है। वह अपने गुरुकुल की दो सौ एकड़ में, हिमाचल प्रदेश में और गुजरात में लाखों किसानों को इस खेती से जोड़ चुके हैं। जैविक खेती में एक एकड़ जमीन के लिए तीस गायों का गोबर चाहिए जबकि प्राकृतिक खेती में तीस एकड़ जमीन के लिए एक गाय का गोबर काफी है। प्रत्येक किसान को बस एक देशी गाय रखनी होगी। इस जीरो बजट प्राकृतिक खेती में देशी गाय के गोबर एवं गो मूत्र का उपयोग करते हैं। गोबर तथा गोमूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत, जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ सूक्ष्म जीवाणु तेजी से बढ़ते हैं। जीवामृत का उपयोग सिंचाई के साथ या एक से दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है।

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