निर्मला दीदी और मधु लिमये जी की याद में !

पहली मई को विश्व भर में अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में याद किया जाता है, जिसके जरिये पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध ‘दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ’ का आह्वान किया गया था। 1 मई को मैं भारतीय राजनीति व समाजसेवा में अग्रणी रहे दो महान् व्यक्तित्वों को आदरपूर्वक याद कर रहा हूं। ये हैं प्रमुख गांधीवादी समाजसेविका निर्मला देशपाण्डे तथा प्रखर समाजवादी मधु लिमये।

आदिवासियों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाली निर्मला दीदी का जन्म 19 अक्तूबर 1929 को नागपुर में हुआ था। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद गांधी जी और आचार्य विनोबा भावे के आदशों से प्रभावित हो वे सर्वोदय से जुड़ गईं। विनोबा जी के भूदान यज्ञ आन्दोलन में उनके साथ 40 हजार किलोमीटर की पद यात्रा की।

समाजसेवा को जीवन समर्पित करने वाली निर्मला दीदी साहित्य सृजन के लिये भी समय निकाल लेती थीं। वे ‘नित्य नूतन’ नाम से एक पत्रिका प्रकाशित करती थीं। पत्रिका में राजनीति अथवा समय काटने वाला निरर्थक मैटर नहीं होता था अपितु समाज निर्माण की प्रेरणा देने वाली सामग्री होती थी।

एलएलबी में मेरे सहपाठी रहे भाई होतीलाल शर्मा जी के माध्यम से मेरा दीदी से परिचय हुआ। उनके साथ दिल्ली में क्विंग्सवे कैम्प स्थित आवास पर उनसे पहला साक्षात्कार हुआ। हम दोनो को देखते ही बोलीं- पहले नाश्ता करो, बातें फिर होंगी। बड़े प्रेम से सत्तू भरे हुए गर्मागर्म पराठे और टमाटर की खट्टी-मीठी भाजी खिलाई। शर्मा जी युवावस्था से ही सर्वोदय से जुड़ चुके थे। इस नाते दीदी से उनका सामिप्य था। वे सन् 1999, 2002, 2003, 2005 तथा 2007 में होतीलाल जी द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने मुजफ्फरनगर पधारी थीं।

महामहिम राष्ट्रपति जी ने निर्मला देशपाण्डे को पद्मविभूषण से अलंकृत किया था। राज्यसभा में भी मनोलीत हुईं किन्तु लगता है सक्रिय राजनीति की चौपड़ पर वही खिलाड़ी विजयी होते है जो साम-दाम-दंड-भेद के हथकंडों के माहिर हों। सन् 2007 में राष्ट्रपति पद के लिये कांग्रेस की ओर से दीदी का नाम चला तो यह सोचा कि राजनीति में अभी अच्छे लोगों की जगह बाकी है, तथापि राष्ट्रपति पद गैर राजनीतिक माना जाता है। अचानक घोषणा हुई कि राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए प्रतिभा पाटिल को खड़ा करेगा जिन्हें वामपंथियों का भी समर्थन होगा। भला सुविधा-भोगी कांग्रेस और वामपंथियों को राष्ट्रवादी सर्वोदयी सोच की निर्मला देशपाण्डे क्यों रास आने लगीं? प्रतिभा पाटिल वे ही मोहतरमा थीं जो राष्ट्रपति पद से रिटायर होने पर उपहार में मिले सामानों को ट्रकों में भर कर राष्ट्रपति भवन से महाराष्ट्र ले आई थीं, जिनके सुपुत्र की गाड़ी से चुनाव आयोग ने एक करोड़ रुपये बरामद किये थे। निर्मला दीदी को किसी पद की ख्वाहिश नहीं रही। 60 वर्षों की दीर्घ अवधि तक निःस्वार्थ सेवा करती हुई वे एक मई, 2008 को परलोक सिधार गईं। हमारा शत् शत् नमन!

मधु लिमये का जन्म महाराष्ट्र में 1 मई 1922 को हुआ था। एक प्रखर, स्पष्टवादी खांटी सोशलिस्ट कार्यकर्ता के रूप में पूरे देश में उनकी ख्याति थी। संसद में जिस प्रकार पक्ष-विपक्ष डॉ. राममनोहर लोहिया, को तन्मयता से सुनता था, वैसे ही लिमये जी को सुना जाता था। दुहरी सदस्यता के प्रश्न पर उनकी अडिगता के चलते ही 1979 में जनता पार्टी टूटी थी। उनसे सिर्फ एक बार बहुत संक्षिप्त भेंट हुई। मेरे मित्र और सोशलिस्ट कार्यकर्ता पीताम्बर त्यागी की ननिहाल ग्राम खुड्डा में है जहां किसी भूमि के टुकड़े को लेकर त्यागी समाज के लोगों का दलितों से विवाद हो गया था जिसमें दलित त्यागियों पर भारी पड़े थे। पीताम्बर जी चाहते थे कि पुलिस दलितों को रोके। वे सिफारिश के लिये राजनारायण जी से मिलने दिल्ली गये। मैं भी साथ था। किन्तु वे कहीं जा चुके थे। त्यागी जी की लिमये जी से भी ठीक ठाक जान पहिचान थी। जब उनके आवास पर पहुंचे तो वे संसद भवन जाने को निकल रहे थे। बोले-सब ठीक-ठाक है? त्यागी जी ने कहा नहीं, ठीक नहीं है। लिमये जी ने सारी बात सुनी। फिर बोले-यदि दलितों ने आपकी लाठियों का जवाब लाठियों से दिया तो बुरा क्या है? दलितों में जवाब देने की हिम्मत आई, यह खुशी की बात है। यही तो हमारा मिशन है!

पीताम्बर जी उनका मुंह ताकते रह गए। मैंने देखा एक सच्चा, निष्कपट समाजवादी हमारे सामने खड़ा है। आज के नेता समाजवाद की मालायें जपते हैं और जातिवाद, साम्प्रदायिकता, माफियावाद के जरिय वोट और नोट कमाने का जुगाड़ करते हैं। 8 जनवरी 1995 को लिमये जी अलविदा कह गये। समाजवाद के पुरोधा लिमये जी को बार-बार नमन्!

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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