भारत में परम्परा है कि ज्यूं-ज्यूं चुनाव या मतदान का समय समीप आता जाता है, मांगों का पुलिंदा सरकार के सामने रख दिया जाता है। इनमें कुछ मांगें बहुत जायज़ होती हैं जिन्हें चुनाव की प्रतीक्षा किये बिना सरकार द्वारा खुद ही स्वीकार कर लिया जाना चाहिये था।
ऐसी ही मांगों में एक उचित मांग स्वास्थ्यकर्मी आशाओं के वेतन या मानदेय में वृद्धि की काफी दिनों से सरकार के समक्ष लांबित है। अब जनपद मुजफ्फरनगर की महिला आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर अपने मानदेय में वृद्धि की मांग की है। आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ के जिला संरक्षक अजब सिंह ने बताया कि एक महिला कर्मी को केन्द्र व राज्य सरकार से कुल 5,500 रुपये मासिक रुपये मानदेय मिलता है, वह भी समय पर प्राप्त नहीं होता।
यह ठीक है कि चुनाव के मौके पर लोग मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, ऋणमाफ़ी, उत्पादों-फसलों के दाम बढ़ाने की मांग करते हैं। जिनका वेतन आम नागरिक की आय से कई गुणा अधिक है, और जो दफ्तरों में जाकर फाइलों में नोट टटोलते हैं, वे चुनाव के मौके पर सरकार को ब्लैकमेल करने से नहीं चूकते। दूसरी ओर आशा व आंगनबाड़ी कर्मियों का वेतन मान महंगाई को देखते हुए बहुत कम है। यह सही है कि आशाओं व आंगनबाड़ी कर्मियों के बीच भी आन्दोलन जीवी छिपे हुए हैं और वे इन अल्प वेतन भोगी महिला कर्मियों का राजनीतिक दोहन करना चाहते हैं किन्तु मुद्दे के राजनीतिकरण की आशंका से न्यायोचित मांग टाली नहीं जानी चाहिए।
गोविन्द वर्मा