लखीमपुर: दोषी तो पुलिस कप्तान भी है !

दुस्साहसी दुष्कर्मियों ने माँ के सामने से उसकी बेटियों का जिस प्रकार अपहरण कर सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी बर्बरता से हत्या करके लाशों को पेड़ से लटकाया और जिस बेशर्मी से लखीमपुर खीरी के पुलिस कप्तान ने इस क्रूरतम कुकृत्य को आत्महत्या का मामला बता दिया, वह दर्शाता है कि योगी के राज में ताजायज़ सम्पत्तियां व रंगदारी वसूलने वाले माफिया ही उनके बुलडोज़र से डरते होंगे, छुटभैये चिरकुट बदमाशों को बुलडोज़र का खौफ नहीं है क्योंकि संजीव सुमन जैसे सुविधाभोगी अधिकारी ऊट-पटांग बयान देकर अपराधियों के बच जाने का रास्ता पहले ही तैयार कर देता है।

अब ये कप्तान साहब फर्मा रहे हैं कि लड़कियों ने हत्यारों से पहले कहा कि तुमने हमारा शीलहरण तो कर लिया अब निकाह कर लों। यह ठीक है कि 80 प्रतिशत मामलों में पुलिस अपना रोजनामचा-केस डायरी दफ्तर में बैठकर लिख लेती है लेकिन इतने संगीन मामले में कोई बड़ा अधिकारी बिना ठोस प्रमाण के ऐसा ऊल-जलूल प्रेस बयान नहीं देता। यदि पुलिस कप्तान के बयान के आधार पर प्राथमिकी लिखी गयी होगी तो सुप्रीम कोर्ट भी दोषियों को वह सजा नहीं दे सकती, जिसके वे हकदार हैं।

एक आश्चर्य यह है कि सख्त प्रशासक कहे जाने वाले मुख्यमंत्री योगी जी ने अभी तक संजीव सुमन को निलंबित कर जाँच क्यों नहीं बैठाई?

एफआईआर में भले ही वह न हो जो एसपी ने कहा है लेकिन ओवैसी व मदनी जैसे लोग आज से ही कहना शुरू कर देंगे कि प्रेमियों को हत्यारा बताया जा रहा है। आगे चलकर इस कथन का लाभ जरूर उठाया जायेगा। जबसे गिद मीडिया को और सेक्युलर नेताओं को दोषियों के नाम पता चलें हैं तबसे उन्हें सांप सूंघ गया है। जरूरी है कि मामले की निष्पक्षता से उच्चस्तरीय जांच हो और सख्त हिदायत दी जाये कि ऐसे मामलों में बड़े अधिकारी संयम बरत कर ही कुछ बोलें ताकि अपराधी बच न पाए।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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