आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर देश के तीन बड़े ‘बुद्धिजीवियों’ के युवक के विषय में विचार पढ़ने को मिले। इन में से एक हैं पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री स्व. कैलाश नाथ काटजू के पौत्र सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज मार्ककंडे काटजू। आपने योग को नौटंकी बताते हुए लंबा-चौड़ा जजमेंट दिया है जिसमें कहा गया है कि जिस देश में चार लाख किसान आत्महत्या कर चुके हों वहां योग जैसी नौटंकी करने की क्या जरूरत है? एक अन्य महानुभाव हैं कांग्रेस के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंधवी। आप फरमाते हैं- ओ३म् के उच्चारण से योग महान् नहीं हो जाता। तीसरे हैं कभी मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी रहे पूर्व आईएएस सूर्य प्रताप सिंह। आपने योग दिवस पर कहा है- गरीब का योग रोटी है, रामदेव का योग पैसा है।
इन ‘बुद्धिजीवियों’ के विचार पर हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। हां यह आश्चर्य जरूर है कि इनके साथ-साथ ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, ओवैसी, अखिलेश, दिग्विजय सिंह व शशि थरूर आदि ने योग विद्या के प्रचार-प्रसार करने पर नरेंद्र मोदी व स्वामी रामदेव को लानत-मलामत अभी तक क्यूं नहीं भेजी?
तीन दशक से भी अधिक पुरानी घटना हमें याद आती है। मैं पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रमुख किसान-मजदूर नेता स्व. रामचंद्र विकल के पास दिल्ली में रुका हुआ था कि उनके पास मास्को (रूस) से अंतरराष्ट्रीय फोन कॉल आई। एक रूसी महिला ने विकल साहब का आभार जताते हुए कहा कि आपने फोन पर मेरे बीमार पुत्र के इलाज को जो योगिक क्रियायें बताई थीं, उनके अभ्यास से वह अब पूरी तरह ठीक हो गया है।
दरअसल, विकल जी की गर्दन में एक असाध्य रोग हो गया था जो किसी इलाज से ठीक नहीं हुआ। इंदिरा गांधी ने उन्हें सलाह दी कि वे धीरेंद्र ब्रह्मचारी से मिलें। वे धीरेंद्र ब्रह्मचारी के गोल चक्कर स्थित आश्रम में जाकर योगाभ्यास करने लगे और चमत्कारिक रूप से विकल साहब का गर्दन का दर्द खत्म हो गया। तब से उन्होंने राजनीति से नाता तोड़ लिया और योग से नाता जोड़ लिया। यदि उन्हें कोई किसी सभा में आमंत्रित करता तो वहां भी वे योग के महत्व की बात ही करते थे। उस समय न रामदेव, न नरेंद्र मोदी का नाम था।
जहां तक ओ३म्, प्रणव या ओंकार शब्द का प्रश्न है इसे समझने के लिए दुराग्रही व्यक्तियों को किसी संस्कारवान परिवार में पुनर्जन्म लेना होगा, और यह उनके बस की बात नहीं।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात