सृष्टि की समस्त विद्याओं की देवी सरस्वती के प्रकोटत्सव की रात्रि वेला में भारत रत्न, स्वर सम्राज्ञी और भारतीय संस्कृति के पुरातन संस्कारों की जीवन्त प्रतिमा लता मंगेशकर 92 वर्ष की आयु पूरी कर अनंत लोक को प्रस्थान कर गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीदी के अंतिम दर्शन हेतु मुंबई पहुंच कर भारत के करोड़ों लोगों की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके सम्मान में दो दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित किया।
28 सितंबर, 1929 में इंदौर में जन्मी लता मंगेशकर ने मात्र 5 वर्ष की आयु में स्वर-साधना आरंभ की जो मृत्यु पर्यंत जारी रही। उनकी जिव्हा पर मां सरस्वती का वास था। 36 भाषाओं में पचास हजार से अधिक दिलकश आवाज में गीत गाने वाली लता मंगेशकर संसार की अद्भुत कलाकार थीं, जिनकी मधुर आवाज भारतीय उपमहाद्वीप में 60 दशकों तक गूंजती रही। अपने समय की प्रसिद्ध गायिका नूरजहां ने जो मल्लिका-ए-तरन्नुम के नाम से जानी जाती थीं, ने लता मंगेशकर की मुक्तकंठ से सराहना की थी।
पिता दीनानाथ की मृत्यु के बाद माता शेवंती और बहनों के पालन-पोषण का भार उनके कमजोर कंधों पर आ पड़ा। उस्ताद गुलाम हैदर ने उन्हें संगीत जगत में जमे रहने का हौसला और शिक्षा दी। 1948 में बनी ‘मजबूर’ फिल्म में लता का गाया गीत ‘दिल मेरा तोड़ा मुझे कहीं का न छोड़ा’ हिट रहा। 1949 में बनी फिल्म ‘महल’ का लता दीदी का गीत ‘आएगा, आएगा, आएगा आनेवाला’ सुपरहिट रहा। बदली संगीत की दुनिया में पाश्चात्य संगीत की धुनों के आधिपत्य के बावजूद लता जी की स्वर लहरियां भारतीय संगीत की परंपराओं से कभी नहीं भटकीं। सच कहें वे शास्त्रीय संगीत की आत्मा थीं।
लता जी ने पचास हजार से अधिक गीतों को अपनी आवाज दी है। उनमें से श्रेष्ठ और श्रेष्ठतम छांट पाना असंभव है। सन् 1958 में बनी मधुमति का गीत ‘आजा रे परदेसी’, परख (1960) का गीत ‘ओ सजना, बरखा बहार आई’, 1961 की छाया का गीत इतना न ‘इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा’, हम दोनों फिल्म (1961) का ‘अल्लाह तेरो नाम’ ऐसे गीत हैं जो अनायास ही होठों पर आ जाते हैं।
हमारे ऋषियों ने सृष्टि का उत्पन्नकर्ता ‘नादब्रह्म’ को माना है। वह स्वर जो समग्र ब्रह्माण्ड में अनन्त तक गूंजता, उतरता, विचरण करता है। इन्ही प्रतिध्वनियों से जड़-चेतन जगत की संरचना व संरक्षण होता है। ब्रह्माण्ड की लहरों से 12 नीचे-ऊंचे स्वर उत्पन्न होते हैं, जिनसे यह संपूर्ण जगत संचालित है। लता दीदी ने इन स्वरों की साधना पूरी तन्मयता से की जैसे कोई मुमुश्रु तपस्या में एकाग्रभाव से लीन होता है। इस तपश्चर्या से मां सरस्वती लता दीदी के कंठ में विराजमान हो गईं। भारतीय परंपराओं तथा सुसंस्कारों के साथ शास्त्रीय संगीत की सतत साधना करने वाली इस संगीत की देवी को हमारा शत् – शत् नमन।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात