मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया है कि छुट्टा गो वंश की समस्या अभी बनी हुई है। श्री योगी ने यह भी बताया कि समस्या समाधान के लिए सरकार ने तीन तरीके अपनाये हैं। पहला- गोआश्रम स्थलों का निर्माण, दूसरा- सहभागिता योजना, तीसरा- कुपोषित परिवारों को दुधारू गाय देना। गोवंश के सरकारी आश्रम स्थलों में 8 लाख पशु रह रहे हैं। जो लोग सामूहिक रूप से गो वंश का संरक्षण कर रहे हैं, उन्हें प्रति पशु 900 रुपये मासिक अनुदान दिया जाता है।
बड़े दुःख का विषय है कि छुट्टा पशुओं की समस्या दिनों दिन गहराती जा रही है। ग्रामों में छुट्टा गोवंश खेत-खेत घूम रहा है। शहरों की सड़कों-चौराहों के साथ निराश्रित बछड़े गलियों में घूमते दिखाई देते हैं।
अति खेद व आश्चर्य की बात है कि समस्या के मूल कारण पर कोई नेता, किसान संगठन, गोसेवक असलियत बयान करने या सच्चाई बताने को तैयार नहीं। किसी किसान नेता ने किसानों या पशुपालकों से अपील नहीं कि वे गोवंश को निराश्रित न छोड़ कर आश्रय स्थलों तक पहुँचायें या सरकारी अनुदान ले कर गो वंश का संरक्षण करें।
कड़वी सच्चाई यह है कि इस समस्या को पैदा करने वाले, नेता और किसान संगठन समाधान निकालने में रंचमात्र भी सहयोग नहीं कर रहे हैं और इस मुद्दे पर भी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैं।
कोई पूछ सकता है कि क्या ये बछड़े योगी ने खेतों व सड़कों पर छोड़े हैं या ये सरकारी गोवंश है? जिन्होंने इन्हें छुट्टा छोड़ा है, क्या वे इन्हें आश्रय स्थलों पर नहीं छोड़ सकते थे। वे गैर जिम्मेदार नागरिक नहीं अपितु पापी और अपराधी हैं।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’