मणिपुर हिंसा: सेना की आवाजाही को रोकने के लिए उड़ाया गया पुल

मणिपुर हिंसा के दौरान कार बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोप पत्र दायर किया है। एजेंसी ने मामले में मुख्य साजिशकर्ता सहित दो आरोपियों के खिलाफ विशेष एनआईए अदालत में आरोप पत्र दायर करते हुए कहा कि आतंक फैलाने और सुरक्षाबलों और लोगों की आवाजाही को रोकने के लिए आरोपियों ने साजिश रची थी। 

यह है पूरा मामला
एजेंसी ने शुक्रवार को बताया कि  21 जून, 2023 को कोटिडिम रोड (एनएच -02) के साथ, फोगाकचाओ इखाई अवांग लीकाई और क्वाक्टा और बिष्णुपुर क्षेत्र से जुड़े एक पुल को कार में आइईडी रखकर उड़ा दिया गया था। विस्फोट में तीन लोग घायल हो गए। इसके अलावा कई सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। विस्फोट के मामले में मोहम्मद नूर हुसैन उर्फ तोम्बा उर्फ मोहम्मद नूर हसन और मुख्य साजिशकर्ता सेमिनलुन गंगटे उर्फ मिनलुन को गिरफ्तार किया गया था।

आरोप पत्र में एजेंसी ने कही यह बात
एनआईए के मुताबिक, आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम- 1908 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम- 1984 की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किए गए हैं। एनआईए जांच के दौरान, पिछले साल 16 अक्टूबर को हुसैन की गिरफ्तारी हुई थी। आरोप पत्र के अनुसार, हुसैन ने कार में आईईडी लगाया गया था और उसे क्वाक्टा में पुल पर पार्क किया था। वहीं, गंगटे ने आईईडी विस्फोट की प्लानिंग और अन्य गतिविधियों को अंजाम दिया था। टीम ने गैंगटे को दो नवंबर, 2023 को गिरफ्तार किया था। गैंगटे ने साथियों के साथ मिलकर आतंक और सुरक्षाबलों-नागरिकों की आवाजाही को रोकने के लिए पुल को उड़ाने की साजिश रची थी। मामले में फरार आरोपियों के खिलाफ जांच जारी है।

मणिपुर में हुई हिंसा का यह है कारण
राज्य में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या करीब 60 प्रतिशत है। ये समुदाय इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। समुदाय का कहना रहा है कि राज्य में म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

वहीं, मौजूदा कानून के तहत उन्हें राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैतेई समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की गुहार लगाई थी। अदालत में याचिकाकर्ता ने कहा कि 1949 में मणिपुर की रियासत के भारत संघ में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता थी। इसी याचिका पर बीती 19 अप्रैल को हाईकोर्ट ने अपना फैसले सुनाया। इसमें कहा गया कि सरकार को मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इसके लिए चार हफ्ते का समय दिया। अब इसी फैसले के विरोध में मणिपुर में हिंसा हो रही है।

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