सुप्रीम कोर्ट से मराठा समुदाय को झटका, नौकरी और पढ़ाई में नहीं मिलेगा रिजर्वेशन

नई दिल्ली: देश की शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के मराठा समुदाय को बड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षित श्रेणी में लाने के लिए शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के रूप में घोषित नहीं किया जा सकता है.

बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है. दरअसल हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठाओं के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था. जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने 26 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी.

इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया गया कि क्या 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की जरूरत है, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 फीसदी निर्धारित की गई थी. इसे मंडल फैसला भी कहा जाता है.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण उचित नहीं है और रोजगार में आरक्षण 12 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए तथा नामांकन में यह 13 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.

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