न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने मामले में दलीलें सुनीं। इनमें यह प्रतिवेदन भी प्रेषित था कि क्या 1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले (मंडल फैसले के तौर पर चर्चित) पर भी वृहद पीठ द्वारा पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। इस फैसले के तहत 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा तय की गई थी।
पीठ ने कहा, ‘रिट याचिका पर दिए गए प्रतिवेदन के जवाब में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपनी दलीलें दी हैं… भारत संघ (यूनियन ऑफ इंडिया) और गुजरात राज्य की तरफ से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी उनके प्रतिवेदन को अपनाया है। सुनवाई पूरी हुई। फैसला सुरक्षित है।’
बता दें कि पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट भी शामिल हैं।
शीर्ष अदालत ने आठ मार्च को कहा था कि वह मुद्दों पर विचार करने का प्रस्ताव करती है। इनमें यह भी शामिल होगा कि क्या इंदिरा साहनी मामले को वृहद पीठ को संदर्भित किए जाने या उस पर पुनर्विचार की जरूरत है खास तौर पर बाद में हुए संवैधानिक संशोधनों, फैसलों और समाज के बदलते सामाजिक ताने-बाने के मद्देनजर।
उच्च न्यायालय ने जून 2019 में कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 प्रतिशत आरक्षण न्यायोचित नहीं था और रोजगार में 12 प्रतिशत तथा दाखिलों में 13 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए।