मुजफ्फरनगर: सभी राजनैतिक पार्टी ने टिकट बंटवारे के लिए अपने-अपने तौर-तरीके अपनाए

मुजफ्फरनगर। विधानसभा चुनाव के एलान के साथ ही टिकट के लिए दावेदारों ने लखनऊ और दिल्ली में डेरा जमा लिया है। दावों के दबाव में राजनीतिक दलों के सर्वे उलझ रहे हैं। पहले चरण का चुनाव, जातियों का समीकरण, कोरोना संक्रमण और किसान आंदोलन के बाद बदले हालात में समन्वय के लिए नेतृत्व को माथापच्ची करनी पड़ रही है। देखने वाली बात यह होगी कि नेता किस-किसकी बात सुनेंगे।
भाजपा, सपा-रालोद गठबंधन, बसपा और कांग्रेस समेत अन्य दलों ने टिकट बंटवारे के लिए अपने-अपने तौर-तरीके अपनाए हैं। सर्वे और फीडबैक नेतृत्व के पास उपलब्ध है, लेकिन टिकट के दावेदारों के अपने-अपने दावों से उलझन खड़ी हो रही है। नामांकन 14 से शुरू होंगे, लेकिन टिकट 15 और 16 जनवरी तक ही घोषित होने की संभावना है। आचार संहिता से पहले जिस तरह अलग-अलग जातियों अपने सम्मेलनों में टिकट में भागीदारी मांगी है, उससे मुश्किलें खड़ी हो रही है। ब्राहमण, मुस्लिम, जाट, गुर्जर, ठाकुर, सैनी, कश्यप, पाल, वैश्य, विश्वकर्मा, वाल्मीकि समाज और अनुसूचित जाति समेत अन्य जातियां टिकट में अपनी-अपनी हिस्सेदारी चाहती है। समन्वय के लिए राजनीतिक दलों के पसीने छूट रहे हैं। ऐसे में बिरादरियों की संख्या का गणित फैलाया जा रहा है, ताकि समन्वय बना रहे। कोरोना संक्रमण काल में होने वाला चुनाव, इस बार जुदा अंदाज में होगा। राजनीतिक दल महामारी के बिंदु पर भी मंथन कर रहे हैं।
किसान आंदोलन के असर की समीक्षा
भाजपा, सपा-रालोद गठबंधन और अन्य दल टिकट के दौरान किसान आंदोलन के असर की भी समीक्षा कर रहे हैं। खासतौर पर बुढ़ाना, चरथावल और खतौली सीट पर आंदोलन के असर और दावेदारों की समीक्षा भी इस बिंदु पर की जा रही है।
आकाओं के दरबार में लगाई हाजिरी
टिकट के दावेदार अपने-अपने नेतृत्व के पास पहुंचकर गुणाभाग कर रहे हैं। नेताओं का लखनऊ और दिल्ली में डेरा है। जिनके नाम पर सहमति बन गई है, वह भी संतुष्ट होने के बजाए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। सिर्फ बसपा ने ही दो प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की है।
सोशल मीडिया पर विरोध और समर्थन
टिकट के लिए सोशल मीडिया पर विरोध और समर्थन का दौर भी चल रहा है। फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर दावेदारों के समर्थन और विपक्ष में खुले तौर पर पोस्ट की जा रही है। इन पोस्ट पर आमजन के कमेंट को शीर्ष नेतृत्व तक भेजा जा रहा है।
शिकायतों से भर गए नेताओं के दरबार
शीर्ष नेतृत्व के दरबार में शिकायतों का भी अंबार लगा हुआ है। दूसरे दावेदारों की खामियों को उजागर किया जा रहा है। राजनीतिक दलों में शिकायतों की छंटनी का कार्य भी किया जा रहा है।

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