मुजफ्फरनगर: घरेलू उत्पाद के दाम में गिरावट से भारतीय किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है- टिकैत

मुजफ्फरनगर। विश्व व्यापार संगठन का 12वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन जिनेवा में 12 से 15 जून के बीच होने जा रहा है। ऐसे में भारत सरकार से भारतीय किसान यूनियन की मांग है कि वह अपने देश के किसानों के हितों की रक्षा करे और लागत मूल्य के हिसाब से किसानों के उत्पादों के मूल्य में उसी अनुपात में वृद्धि का अनुपालन कराने हेतु दबाव बनाए ताकि देश के किसानों को उसका उचित लाभ मिल सके।

भारतीय किसान यूनियन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसानों के संगठन ला विया कैंपसिना (lvc) का एक सदस्य संगठन है, इस बार इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव चौधरी युद्धवीर सिंह की अगुवाई में तीन किसान नेताओं का प्रतिनिधिमंडल जिनेवा पहुंच रहा है। वह भारतीय किसान यूनियन की तरफ से किसानों का प्रतिनिधित्व करेगा।

यह सम्मेलन में ऐसे समय में हो रहा है जब देश के किसान जो पहले से भी कृषि संकट से जूझ रहे थे, उन पर कोविड-19 महामारी की दोहरी मार पड़ी है। इस वक्त उर्वरक, ईंधन और अन्य लागत में तेजी आई है, जिससे किसानों के लिए उत्पादन महंगा हो गया है और दूसरी तरफ उत्पाद की कम कीमत उन्हें कर्ज के दुष्चक्र में फंसा रही है। किसान उत्पादों की लागत बढ़ने के अनुरूप अगर उत्पाद के मूल्य में तेजी नहीं लाई गई तो 140 करोड़ देशवासियों की खाद्य जरूरतों को पूरा करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। वैश्विक खाद्य संकट के दौर में ऐसा होने से देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

भारतीय किसान यूनियन का स्पष्ट मत है कि मुक्त व्यापार समझौते और बाहरी देशों से सस्ते आयात के आने से घरेलू उत्पाद के दाम में गिरावट से भारतीय किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है और कई बार इसकी वजह से किसान आत्महत्या भी कर लेते हैं।

इसलिए भारतीय किसान यूनियन का स्पष्ट मत है कि दुनियाभर में जारी की जा रहीं नवउदारवादी आर्थिक नीतियों में बदलाव किसा जाए और भारत कृषि को डब्ल्यूटीओ तथा मुक्त व्यापार समझौते से दूर रखा जाए।

इस सम्मेलन में कृषि, डिजिटल व्यापार या ई-कॉमर्स, मत्स्यपालन सब्सिडी पर प्रस्तावित करार, महामारी को लेकर डब्ल्यूटीओ की प्रतिक्रिया मसलन बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू यानी ट्रिप्स की छूट, संयुक्त वक्तव्य पहल (जेएसआई) से संबंधित मामलों के अलावा डब्ल्यूटीओ में सुधारों से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा होनी है। और भारतीय किसान यूनियन का स्पष्ट मत है कि भारतीय किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए नियमों में बदवाल किया जाए और जरूरत हो तो किसान विरोधी नियमों को रद किया जाए।

पहला प्रयास रह रहेगा कि विकसित देश विकासशील देशों के किसानों के हितों को सर्वोपरि रखें और उनमें टकराव की नौबत न आए। दूसरा ये कि जो सुविधाएं और सीधे सब्सिडी विकसित देश अपने किसानों को दे रहे हैं, उसी तरह विकसित देशों को भी डायरेक्ट सब्सिडी किसानों को मिले। वहीं, मात्रात्मक प्रतिबन्ध में भारत सरकार कतई ढील न दे क्योंकि ऐसा होने से भारतीय किसानों को खामियाजा ही भुगतना पड़ा है उसके अच्छे परिणाम सामने नहीं आए हैं।

स्वास्थ्य और पादप स्वास्थ्य प्रावधान तथा व्यापारगत प्राविधिक अवरोध नामक समझौते से विकासशील देशों के किसानों में कुछ आस जगी थी लेकिन विकसित देशों ने इस समझौते के इतर जाकर अपने ही देश के किसानों के हितों को सर्वोपरि रखा जिसके बाद किसानों को निराशा ही हाथ लगी। इसलिए इस सम्मेलन में विकसित देशों पर विकासशील देशों के किसानों की हितों की अनदेखाी न करने का दबाव बनाया जाएगा और किसानों के हितों की अनदेखी का पुरजोर विरोध भी वहां किया जाएगा।

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