छतीसगढ़ कर्मचारी फेडरेशन की 5 दिवसीय हड़ताल को नक्सलियों का समर्थन, जारी किया पर्चा

छत्तीसगढ़ के अधिकारी-कर्मचारियों की सोमवार से शुरू हो रहे पांच दिवसीय हड़ताल का नक्सलियों के दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने पर्चा जारी कर समर्थन किया है। कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने पर्चे में कहा है कि छत्तीसगढ़ अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन के आह्वान आगामी 25 से 29 जुलाई तक के पांच दिनी कलम बंद काम बंद हड़ताल का पुरजोर समर्थन करती है। साथ ही फेडरेशन के 75 संगठनों के सभी 5 लाख कर्मचारियों एवं अधिकारियों को आह्वान करती है कि वे अपने महंगाई भत्ता, भाड़ा भत्ता हासिल करने उक्त हड़ताल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें।

विकल्प ने पर्चे में कहा है कि शिक्षक, कर्मचारी संगठनों का आंदोलन साल भर से जारी हैं और यह भी विदित है कि शिक्षक एवं कर्मचारियों ने अब तक चरणबद्ध आंदोलन किए हैं परंतु सरकार का रवैया भैंस के सामने बीन बजाने के बराबर है, हमारी पार्टी छत्तीसगढ़ के सभी शिक्षक संगठनों से अपील करती है कि वे अपने सदस्यों को हड़ताल में शामिल करें। हालांकि छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोशिएशन ने हड़ताल का समर्थन करने और स्कूल न जाने की घोषणा कर चुकी है, जो कि सराहनीय है। हमारी पार्टी कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन एवं टीचर्स एसोसिएशन का आह्वान करती है कि दोनों संयुक्त मंच गठित कर पांच दिनी हड़ताल को अनिश्चित कालीन हड़ताल में तब्दील कर अपनी मूलभूत समस्याओं के हल के लिए आगे बढ़े।

विकल्प ने पर्चे में कहा है कि; हमारी स्पेशल जोनल कमेटी मजदूर व किसान संगठनों से अपील करती है कि कर्मचारियों की हड़ताल का खुलकर समर्थन करें। जिस तरह 75 संगठन एकजुट होकर छत्तीसगढ़ अधिकारी कर्मचारी फेडरेशन बनाकर अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलन कर रहे हैं, उसी तर्ज पर इस फेडरेशन को छत्तीसगढ़ के सभी शिक्षक, किसान, मजदूर संगठनों के साथ मिलकर एक महासंघ बनाकर केंद्र, राज्य सरकारों की किसान-मजदूर-शिक्षक-कर्मचारी विरोधी एवं दलित-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ व्यापक संगठित व जुझारू आंदोलन का निर्माण करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

विकल्प ने पर्चे में बताया है कि विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्मनाक शर्तों के तहत ही केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से शिक्षा, स्वास्थ्य सहित सभी सरकारी विभागों में लंबे समय से स्थायी नियुक्तियां बंद कर दी गयी हैं। संविदा नियुक्ति, दैनिक वेतनभोगी नियुक्तियां, आउट सोर्सिंग आम बात हो गयी हैं। इतना ही नहीं, महंगाई भत्ते में बढ़ोत्तरी न करना, वेतन-भतों में विभिन्न कटौतियां करना जारी हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो व्यवस्थापन खर्च कम करने के नाम पर कर्मचारियों व छोटे अधिकारियों के  वेतन-भत्तों पर डाका डाला जा रहा है। जन कल्याणकारी योजनाओं, गरीब जनता को दी जाने वाली सब्सिडियों में कटौती की जा रही है। यह कमोबेश देश भर में जारी है। केंद्र, राज्य सरकारों के बजटों में पूंजीपतियों को छूट ही छूट देते हुए उन्हें माला-माल किया जा रहा है जबकि मजदूरों, किसानों, कर्मचारियों की लूट ही लूट के जरिए उन्हें बेहाल किया जा रहा है।

विकल्प ने पर्चे में कहा है कि देश विदेश के कॉरपोरेट घरानों को अत्यधिक मुनाफा पहुंचाने के तहत ही केंद्र, राज्य सरकारों खासकर द्वारा धड़ल्ले से एवं बेशर्मी से नित नयी जन विरोधी नीतियां बनायी व अमल में लायी जा रही हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को कौडि?ों के भाव देश-विदेश के पूंजीपतियों के हाथों सौंपा जा रहा है। हाल ही की अग्निपथ योजना, वन एवं पर्यावरण संरक्षण कानूनों में पूंजीपति परस्त एवं जन विरोधी संशोधित नियम-2022 बनाना आदि सरकार के युवा विरोधी, आदिवासी विरोधी चरित्र के ताजा उदाहरण हैं। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों व अधिकारियों को चाहिए कि वे अपनी मांगों तक सीमित न होकर मजदूरों, किसानों, आदिवासियों की मांगों को लेकर भी साझा आंदोलन करने की ओर कदम बढ़ाएं।

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