जर्जर बिल्डिंग की सभी मंजिलों पर न तो पानी और न ही शौचालय की सुविधा है। बारिश के मौसम में कमरे के अंदर हर तरफ पानी पानी तो सर्द हवाओं से बचने के लिए टूटी खिड़कियां। करीब 10 साल पहले रचना सिनेमा के नजदीकी स्लम से विस्थापित हुए 200 से अधिक लोगों की जिंदगी पर बुनियादी कमियां भारी पड़ती जा रही हैं। परिवार का गुजारा करने के लिए चमचमाती रोशनी वाले खिलौने बेचने वालों के आशियानों में राहत की रोशनी मिलने का इंतजार है।
चरण सिंह, सविता और रविन्द्र जैसे कई परिवारों के सदस्य दिहाड़ी पर काम करते हैं। शाम के वक्त काम से लौटने पर भी घर पर उन्हें गंदगी, पानी की किल्लत के साथ जूझना पड़ता है। मोतिया खान में वाणिज्यिक परिसर में बने रैन बसेरा की तुलना इसी इमारत में बने दूसरे हॉल से की जाए तो अंतर साफ हो जाता है।
दूसरों का घर रोशन करने वालों की जिंदगी में अंधेरा
चरण सिंह इसी बिल्डिंग में रहते हैं। ढोल बजाने का काम नहीं मिलता है तो कुछ बेचकर परिवार का गुजारा करते हैं। मगर, बंदिशें इतनी कि अब सड़कों पर कुछ काम करने के लिए निकलना भी मुश्किल हो गया है। एनडीएमसी, पुलिस या प्रशासन की कार्रवाई में अक्सर सामान जब्त कर लिए जाते हैं। नतीजतन, बच्चों को खाना खिलाने की भी चिंता सताती रहती है। महीने में ऐसा मौका चार-पांच दिन आता है, जिसे यादकर खुद को कोसते हैं। बोतलबंद खिलौनी बेचकर दूसरों का घर रोशन करने वाले रविंदर को कार्रवाई का डर है। अगर इन उत्पादों की लागत भी डूब जाए तो कई परिवारों के घरों में अंधेरा कब छंटेगा।
दूर होगी दिक्कत
दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड(डुसिब)के सदस्य बिपिन राय ने बताया कि मोतिया खान स्थित इमारत में कुछ परिवारों को स्लम से विस्थापित होने पर रहने के लिए जगह दी गई है। बुनियादी सुविधाओं में अगर कोई कमियां हैं तो इसे जल्द दूर किया जाएगा। पानी या छतों की सीलिंग को दुरस्त किया जाएगा ताकि यहां रहने वालों को दिक्कत न आए। स्लम से विस्थापित परिवारों को मकान दिए जाएंगे। इसपर काम चल रहा है।