हमारी नई राष्ट्रपति !

बाबा साहेब आम्बेडकर जी चाहते थे कि राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर कोई पिछड़े, उपेक्षित समाज का शख्स बैठे। 25 जुलाई 2022 को जब द्रौपदी मुर्मू 15वें राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी तब आम्बेडकर जी का यह सपना दूसरी बार साकार होगा। आदिवासी संस्कृति प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। जब हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम का स्मरण करते हैं तो माता शबरी को कैसे भूल सकते हैं? निषाद राज ने ही वन-गमन के समय राम, लक्ष्मण, सीता को पार उतारा था। यदि नेतागण अपने मन के कलुष, अहंकार, घृणा व ईर्ष्या को
तिलांजलि देकर विचार करें तो वे देख पायेंगे कि नरेन्द्र मोदी पुरातन भारतीय संस्कृति एवं उदात्त परम्पराओं की कड़ियों को जोड़ने का सत्प्रयास कर रहे हैं।

विपक्ष के उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा, अपने चुनाव प्रचार में कहते रहे कि मैं रबर स्टैम्प नहीं बनूंगा। राष्ट्रपति बनते ही सी.ए.ए को खत्म कर दूंगा। वंशवादी राजनीति की पैदाइश तेजस्वी यादव द्रौपदी मुर्मू को मिट्टी की मुरत बताते रहे। दलील यह कि मुर्मू को बोलना नहीं आता। जिला पंचायत की पार्षद, विधायक व राज्यमंत्री और झारखंड के राज्यपाल का पद द्रौपदी मुर्मू ने बिना बोले ही हासिल कर लिया था? इन्होंने अपने पिताश्री से हेमा मालिनी के गालों की तरह सड़के बनाने के लटके-झटके ही सीखे हैं। अब तो इनका यादव समाज भी इस प्रकार के हथकंडेबाजी को समझने लगा है।

निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने शालीनता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर राष्ट्रपति पद का गौरव बढ़ाया है। जीवन-संघर्ष मे तप कर निकली द्रौपदी मुर्मू श्रेष्ठ और बेहतर राष्ट्रपति साबित हों, यह केवल हमारी ही नहीं, समग्र राष्ट्र की कामना है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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