30 अक्टूबर: भारत अवतारों, सिद्ध पुरुषों, ऋषि-मुनियों, सन्तों का देश है। ऐसी ही एक महान् आत्मा का गंगा एवं यमुना के बीच की धरती (दोआबा प्रदेश) मुजफ्फरनगर में ब्रह्मज्ञानी, जन-जन के संकट-मोचक और पीड़ा निवारक सत्श्री महेन्द्रपाल सिंह का कार्तिक बदी चर्तुदशी (करवा चौथ) सम्वत् 1987 तद्नुसार 30 अक्टूबर 1930 को ग्राम बोपाड़ा में पिता लाला लक्खोमल एवं माता राजदेई के घर आविर्भाव हुआ।
उल्लेखनीय है कि गुरु महाराज के पूर्वज बाबूराम जी ने 170 वर्ष पूर्व हस्तलिखित पुस्तक ‘गुलदस्ते अमानत’ में गुरु महारात के आविर्भाव की भविष्यवाणी लिख दी थी, जब तक उनके पिताश्री लक्खोमल जी का भी जन्म नहीं हुआ था। अन्य सन्तों-ज्योतिषियों ने भी महेन्द्र जी के जन्म से पूर्व ही उनके अवतरण की घोषणायें लिखित में कर दी थीं।
यह उल्लेखनीय है कि बाल्यकाल से ही गुरु महाराज की विलक्षण प्रतिभायें एवं चमत्कार परिलक्षित होने लगे थे। गुरु महाराज का बाल्यकाल एवं किशोर अवस्था भी असामान्य तथा असाधारण रहीं। माँ से साक्षात्कार होने के पश्चात् उनका जीवन ही बदल गया। जीवन में नित्य प्रतिअलौकिक घटनायें घटिट होने लगीं। ईश्वरीय शक्ति माँ के प्रति आस्था और सामिप्य बढ़ता चला गया। एक प्रकार से वे शक्ति में ही विलीन रहने लगे।
अलौकिक दिव्य शक्तियां प्राप्त होने के बाद गुरु महाराज ने जीवन माँ की वन्दना और जन सेवा में समर्पित कर दिया। जाति-सम्प्रदाय-वर्ग भेद से मुक्त हो कर परपीड़ा निवारण को उन्होंने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
गुरु महाराज की ईष्ट के प्रति समर्पण और सकल समाज की सेवाओं की गाथाएं अनन्त हैं। अपने जीवन काल में ही ग्राम बोपाड़ा में ‘मानवता धाम’ की स्थापना से उन्होंने समाज को मानव धर्म की सच्ची राह दिखाई। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हमें गुरु महाराज का स्नेह व आशीर्वाद मिला। उनके अवतरण दिवस पर हमारा कोटि-कोटि नमन् !
गोविन्द वर्मा