टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए हॉकी खेल को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय खेल घोषित करने का मांग की जा रही है। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इंकार कर दिया है। दायर की गई याचिका पर कोर्ट ने वकील से कहा है कि, “यह मांग अच्छा हो सकता है लेकिन हम मामले में कुछ नहीं कर सकते है। अगर आप चाहे तो इस मामले का ज्ञापन सरकार को सौंप सकते हैं।”
जापान में खेले गए ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम और पुरुषों की हॉकी टीम ने जबदर्स्त प्रदर्शन किया था। उनके शानदार प्रदर्शन की प्रशंसा पूरे देश ने की थी। उनके इस लगन और मेहनत को देखते हुए हॉकी को आधिकारिक रूप से में राष्ट्रीय खेल घोषित करने की मांग होने लगी और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस याचिका को लेकर कोर्ट ने आज सुनवाई करने से मना कर दिया है।
किसने की थी हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित करने की मांग
विशाल तिवारी नाम के वकील ने हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित करने की मांग की और उन्होंने ही कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने मांग करते हुए कहा था कि, “हॉकी को राष्ट्रीय खेल घोषित किया जाए और एथेलेटिक्स जैसे तमाम खेलों की व्यवस्थाओं में दुरुस्त की जाए और सुविधाएं बढ़ाई जाएं। हालांकि हॉकी को राष्ट्रीय खेल माना तो जाता ही है, लेकिन उसे अब तक आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है। ऐसे में हॉकी अपनी असली पहचान खोता जा रहा है।”
हॉकी को राष्ट्रीय खेल कब घोषित किया गया?
साल 1928 से लेकर 1956 तक को भारतीय हॉकी का स्वर्णिय युग कहा जाता है। इस दौरान भारत ने छह ओलंपिक में लगातार गोल्ड जीता था। इस खेल की बढ़ती लोकप्रियता ने साल 1928 तक इसे भारत का राष्ट्रीय खेल बना दिया। हालांकि अब तक इसे सरकार की ओर आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी गई है। 1928 में ही भारतीय हॉकी टीम एमस्टर्डम ओलंपिक में हिस्सा लिया और बिना गोल दिए स्वर्ण पदक अपने नाम किया।