गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग वाली याचिकाएं धन वसूली कार्यवाही नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग करने वाली याचिकाएं धन वसूली की कार्यवाही नहीं हैं और पीड़ित को अंतरिम मुआवजा देने की शर्त को आरोपित करना अनुचित है। शीर्ष अदालत ने वैवाहिक विवाद में अलग हुए पति और उसके परिवार के सदस्यों की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को संशोधित किया जिसके द्वारा उसने तीन लोगों को 25-25 हजार रुपये के बांड भरने के अलावा अंतरिम मुआवजे के रूप में 7.5 लाख रुपये की राशि जमा करने पर अग्रिम जमानत दी थी, जिस महिला ने वैवाहिक मामला दर्ज कराया था।

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने 29 सितंबर को झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को संशोधित किया। हाईकोर्ट ने इस आदेश में तीन लोगों को मामला दायर करने वाली महिला को 7.5 लाख रुपये के अग्रिम मुआवजे के अलावा प्रत्येक को 25-25 हजार रुपये का बॉन्ड जमा करने का निर्देश दिया था। पीठ ने कहा, हमारी स्पष्ट राय है कि अग्रिम जमानत की मांग वाली याचिकाएं धन वसूली की कार्यवाही नहीं हैं। इस तरह के मामले में अपीलकर्ता पर मुआवजा लगाने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।

हर तारीख में विचाराधीन कैदियों की पेशी के मसले पर 11 को सुनवाई 
सुप्रीम कोर्ट हर तारीख पर विचाराधीन कैदियों की पेशी के आदेश से जुड़े सुरक्षा के पहलू पर 11 अक्तूबर को सुनवाई करेगा। सीजेआई यूयू ललित की पीठ मंगलवार को इस मामले को सुनेगी। वकील ऋषि मल्होत्रा ने याचिका में ऐसे कैदियों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है। याचिका में कहा गया कि अगर ट्रायल कोर्ट को लगता हे कि उसके समक्ष विचाराधीन कैदी की पेशी जरूरी है तो वह ऐसा वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए कर सकती है। खासतौर से गैंगस्टर के मामलों में, ताकि जन सुरक्षा और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा पर कोई प्रभाव न पड़े और अभियुक्तों के अधिकार संतुलित रहें।

याचिकाकर्ता ने कहा, तत्काल जनहित याचिका का आधार देश भर में विभिन्न परीक्षण अदालतों को रोकने के लिए है। ताकि वे प्रत्येक और हर तारीख पर विचाराधीन कैदियों की उपस्थिति पर जोर न दें। क्योंकि यह नियमित अभ्यास न सिर्फ सुरक्षा के लिए खतरा है बल्कि कट्टर कैदियों को पुलिस की हिरासत से भागने का मौका भी देता है। याचिका में पिछले साल दिल्ली की एक अदालत में फायरिंग समेत अन्य कई घटनाओं का भी जिक्र किया गया है।

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