पीएफआई की सोच सही नहीं लेकिन प्रतिबंध गलत: ओवैसी

केंद्र सरकार ने आतंकी गतिविधियों में लिप्त पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) व उसके आठ सहयोगी संगठनों पर पांच साल के लिए पाबंदी लगा दी है। लेकिन अब इस प्रतिबंध के बाद सियासत भी तेज हो गई है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि  PFI की सोच का हम पहले से विरोध करते आए हैं लेकिन इसपर प्रतिबंध बिल्कुल गलत है। उन्होंने कहा कि अपराध करने वाले कुछ व्यक्तियों के कार्यों का मतलब यह नहीं है कि संगठन को ही प्रतिबंधित किया जाए। सरकार दक्षिणपंथी बहुसंख्यक संगठनों पर बैन कब लगाएगी? उन्हें संरक्षण क्यों दिया जा रहा है? 

जानें PFI क्या है?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। पीएफआई का दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। इसकी कई शाखाएं भी हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं।

इस संगठन पर क्या आरोप हैं?
PFI एक कट्टरपंथी संगठन है। 2017 में NIA ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। NIA जांच में इस संगठन के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बात आई थी। NIA के डोजियर के मुताबिक यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।  यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है। एनआईए ने पीएफआई पर  हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं यह संगठन युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए भी उकसाता है।

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