पी.के. की कांग्रेस में नो एंट्री


सत्ता पर काबिज होने की ललक रखने वाले नेताओं को चुनाव जिताने के सपने बेचने वाले सौदागर पी. के. यानि प्रशान्त किशोर की कांग्रेस से चल रही डील टूटने की दोतरफा खबर आज खूब चर्चा में रही। एक पखवाड़े से खबरें आ रही थीं कि पी.के. ने कांग्रेस को 2024 में होने वाले संसदीय चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपदस्थ करने का पक्का फार्मूला बता दिया है। यह भी चर्चा रही कि पी.के. कांग्रेस में शामिल होकर इस फार्मूले पर अमल करायेंगे ताकि लोकसभा में कांग्रेस कम से कम 350 सीटें हासिल कर सके। उन्होंने 83 पृष्ठों की कार्ययोजना सोनिया गांधी को पेश की थी जो लीक हो गई।

आज दोपहर पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया को बताया कि मैडम ने पी. के. को कांग्रेस के विशेष कार्य दल का सदस्य बनाने का ऑफर भेजा था जिसे पी.के. ने स्वीकार नहीं किया। 24 मिनट बाद पी.के. ने भी ट्वीट किया कि उन्हें कोग्रेस में शामिल होने का प्रस्ताव मिला था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया है। यह भी चचाएं थीं कि पी.के. खुद पूर्णकालिक अध्यक्ष या चुनाव अभियान का सर्वेसर्वा बनना चाहते थे जिसका पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने विरोध किया था।

आज कांग्रेस की स्थिति उस परीक्षार्थी जैसी हो गई है जो इम्तिहान में प्रथम श्रेणी में पास तो होना चाहता है किन्तु पढ़ाई से दूर रह कर। उसे चाहे नकल करके पास होना हो, चाहे कॉपियां जांचने वाले एग्जामिनर को पटाना हो अथवा फिर चाहे रिजल्ट कार्ड ही फर्जी क्यूं न बनवाना हो, हर हालत में पास होना है। कांग्रेस हाईकमान के अर्थात सोनिया, प्रियंका व राहुल के चुनाव जिताऊ फार्मूले बुरी तरह नाकाम हो चुके हैं।

हाई कमान को समझ नहीं आ रहा है कि किस जुगाड़ से सत्ता कब्जाई जाए। उन्हें जनता के सरोकारों और जमीनी हकीकत से जुड़ना नहीं, पार्टी के निष्ठावान लोगों की सलाह की उपेक्षा कर चाटुकारिता करने और सब्जबाग दिखाने वालों के चक्कर में फंसना है। इतना ही नहीं, पार्टी के वफादारों को अपमानित और जलील करके वंशवाद की नीति को आगे बढ़ाते रहना है।

इस स्थिति में जे.एन.यू. के छिछोरे स्वयंभू नेताओं और हार्दिक पटेल जैसे वाचाल लोगों और पी. के. जैसे सपनों के सौदागरों के झांसे में फंसना कांग्रेस नेतृत्व की मजबूरी है। तत्काल सत्ताभोग की लालसा ने कांग्रेस की क्या गत बना दी है! वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि रचनात्मक विपक्ष की भी लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है। वे निरन्तर झूठ, छल, प्रपंच और दोषारोपण तथा पी.के. जैसे लोगों के इस्तेमाल को ही अपनी रणनीति बना चुके हैं। इसी लिये कांग्रेस की स्थिति क्षेत्रीय राजनीतिकदलों से भी गईबीती बनती जा रही है।

गोविन्द वर्मा

संपादक ‘देहात’

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