किसान आंदोलन पर हावी सियासत, क्या टिकैत बन पाएंगे विपक्ष की ताकत?

कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के आंदोलन का आज 70वां दिन है. अब तक किसान कानून वापसी पर अड़े हैं और दिल्ली के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. आज किसान नेता राकेश टिकैत हरियाणा के जींद में महापंचायत में हिस्सा लेंगे. टिकैत का दावा है कि यह किसान आंदोलन अक्टूबर तक चलने वाला है.

by- यशवर्धन

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर कृषि कानूनों के विरोध में पिछले दो महीने से धरना कर रहे किसान उस वक्त निराश हो गए थे, जब उनका आंदोलन टूटने की कगार पर था. दरअसल, 26 जनवरी को किसानों द्वारा दिल्ली में निकाली गई ट्रैक्टर परेड के दौरान जमकर हिंसा की घटनाएं हुई. ऐसे में प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए किसानों के आंदोलन खत्म करने की चेतावनी दे दी थी, लेकिन  भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने पुलिस के साथ मंच पर बातचीत के दौरान रोते हुए कहा कि अब वो आंदोलन खत्म नहीं करेंगे.

इस दौरान राकेश टिकैत कहा कि जब तक उनके गांव से पानी नहीं आएगा वे पानी भी नहीं पिएंगे. टिकैत का इस दौरान भावुक होना ही किसान आंदोलन का टर्निंग प्वांइट बन गया. या यूं कहें कि राकेश टिकैत के आंसुओं ने किसान आंदोलन में दोबारा जान फूंक दी है. वहीं अब किसान आंदोलन में बेजान विपक्ष अपने लिए सियासी संजीवनी ढ़ूंढ़ रहा है.

पहले विपक्षी दलों के नेताओं ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन में सियासी मौका ढूंढा और फिर मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में पहुंचकर किसानों को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. यानि साफ है कि राकेश टिकैत के कांधे का सहारा लेकर और किसान आंदोलन को सीढ़ी बनाकर विपक्ष पश्चिमी यूपी से ताकत जुटाने में जुट गया है. 

मुजफ्फरनगर में हुई किसानों की महापंचायत में जब मुस्लिम और जाट नेताओं ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पहली बार मंच साझा किया तो विपक्षी दलों को अमृत मिलने की उम्मीद दिखाई देने लगी. विपक्षी दलों के नेताओं ने पहले गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन में सियासी मौका ढूंढा और फिर मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में पहुंचकर किसानों को लुभाने का दांव फेंक दिया.

महापंचायत में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह के बेटे और पार्टी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह के नाम का दांव फेंक दिया. लोटे में गंगाजल भरकर किसानों को एक होने की कसम दिलाई.  वहीं आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, समाजवादी पार्टी की तरफ से कैराना के विधायक नाहिद हसन ने किसान एकता का नारा बुलंद किया. कांग्रेस की तरफ से इमरान मसूद ने किसानों के मंच से खड़े होकर खुद को किसान हितैषी बताया और बीजेपी पर जमकर हमला बोला

मुजफ्फरनगर दंगे के बाद ये पहला मौका रहा है जब रालोद, सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ मुस्लिम किसान नेताओं और हिन्दू किसान नेताओं ने एक साथ मंच साझा किया है.

महापंचायत की इसी एकता के दम पर विपक्षी पार्टियां अपनी जीत का सपना संजो रही हैं और इसकी बाजिव वजह भी है. यही वजह है कि तमाम विपक्षी पार्टियों ने खुद को किसान आंदोलन के साथ खड़ा कर दिया है.और जाटलैंड को अपने पाले में लाने का प्लान बनाया जा रहा है. हालांकि, विपक्ष के इस प्लान पर बीजेपी तंज कस रही हैऔर कह रही है कि किसान आंदोलन पर सियासत करने वालों के मंसूबे कभी कामयाब नहीं होंगे.

साफ है कि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसुओं से दोबारा खड़े हुए किसान आंदोलन में विपक्ष ने संजीवनी ढ़ूंढ़ना शुरू कर दिया है, लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई ये महापंचायत सियासी उलट फेर की दस्तक है. क्या वाकई राकेश टिकैत जाट राजनीति के केंद्र में बैठ सकेंगे. क्या विपक्षी दलों के लिए राकेश टिकैत संकटमोचक बन पाएंगे।

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