अखाड़ा परिषद की राजनीती- उदासीन परंपरा के अखाड़ों पर निगहा

वैरागियों के तीन और संन्यासी परंपरा के दो अखाड़ों के अलग होने के बाद अब अखाड़ा परिषद की सोमवार को होने वाली चुनावी बैठक में उदासीन परंपरा के ही अखाड़ों पर दारोमदार टिका है। कहा जा रहा है कि उदासीन परंपरा के दो अखाड़े अगर साथ नहीं आए तो फिर बहुमत के आंकड़े को पलटना मुश्किल हो जाएगा। 13 में से सात अखाड़े टूट कर अलग अखाड़ा परिषद का हरिद्वार में गठन करने के साथ ही नए अध्यक्ष का चुनाव भी कर चुके हैं। लेकिन, अब फिर सात अखाड़ों को साथ लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया गया है। देर शाम अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि भी प्रयागराज पहुंच गए। 

हरिद्वार में असंतुष्टों की ओर से गठित अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष संन्यासी परंपरा के महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरीको बनाया गया है, लेकिन अब उसी महानिर्वाणी को ही तोड़ने की जुगत की जा रही है। पता चला है कि महानिर्वाणी अखाड़े के कुछ असंतुष्ट पदाधिकारी अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि और निरंजनी अखाड़े के सचिव रवींद्र पुरी के संपर्क में बने हुए हैं। महानिर्वाणी के नाराज संतों से फोन पर वार्ता भी हुई है और उनको 25 की बैठक में आने का न्यौता भी दिया गया है।


महंत रेशम सिंह और गोपाल सिंह भी होंगे शामिल
महानिर्वाणी के असंतुष्ट खेमे के इस बैठक में शामिल होने का दावा किया जा रहा है। इसके अलावा आनन-फानन में निर्मल अखाड़े के अध्यक्ष बनाए गए महंत रेशम सिंह और कोठारी महंत गोपाल सिंह ने भी इस बैठक में शामिल होने का एलान किया है। ऐसे में इस बैठक में सात अखाड़ों के शामिल होने का दावा किया जा रहा है। इसके अलावा नया अखाड़ा उदासीन के भी पदाधिकारियों के इसमें पहुंचने की बात कही जा रही है। उल्लेखनीय है कि महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध हालत में हुई मौत के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का पद रिक्त हुआ है।

अध्यक्ष पद के लिए दोबारा बैठक बुलाने का औचित्य नहीं: महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री
निर्मल अखाड़े के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री ने शनिवार को 25 अक्तूबर को होने वाली बैठक को आधारहीन बताया। उन्होंने कहा कि लंबे समय से अध्यक्ष और महामंत्री का पद संन्यासी अखाड़ों के पास रहा है। ऐसे में अब उनको इसके लिए दांव-पेच छोड़ देना चाहिए। हरिद्वार में जब अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष सात अखाड़ों ने मिल कर चुन लिया है तो फिर दोबारा बैठक करने और चुनाव कराने का कोई औचित्य नहीं बनता। रही बात निर्मल अखाड़े के टूटने और रेशम सिंह को अध्यक्ष बनाने की तो यह सब साजिश का हिस्सा है और इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

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