मणिपुर में हो रहा सीआरपीएफ और बीएसएफ हटाने का विरोध

मणिपुर के लोगों ने देश के दो बड़े ‘केंद्रीय अर्धसैनिक बल’, सीआरपीएफ और बीएसएफ को ड्यूटी से हटाने का विरोध किया है। पिछले दो-तीन दिन के दौरान मणिपुर में कई जगहों पर ऐसे विरोध-प्रदर्शन देखने को मिले हैं, जहां स्थानीय लोगों ने केंद्रीय बलों की वापसी के खिलाफ धरना दिया है। हिंसाग्रस्त इलाकों के लोगों का कहना है कि वे इन बलों को वापस नहीं जाने देंगे। इन्होंने वहां पर शांति स्थापना में अहम योगदान दिया है। अगर ये बल यहां से जाते हैं, तो वे दोबारा से असुरक्षित हो जाएंगे। दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती की भारी मांग है। सुरक्षा बलों के अधिकारियों का चुनावी ड्यूटी के लिए जवानों की तय नफरी को पूरा करने में पसीना छूट रहा है। मणिपुर से हटाई जा रही केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 100 कंपनियों को पश्चिम बंगाल एवं दूसरे राज्यों में भेजा जाएगा। जानकारों का कहना है, मणिपुर से सीएपीएफ को हटाना, जोखिम भरा कदम साबित हो सकता है। अभी मणिपुर में शांति बहाल नहीं हुई है।

सीएपीएफ की 100 कंपनियों को चुनावी ड्यूटी पर लगाया
मणिपुर से लगभग 5,000 केंद्रीय बलों (सीएपीएफ) के जवानों को वहां से वापस बुलाने का आदेश जारी हुआ है। इस आदेश को दो केंद्रीय बल, सीआरपीएफ और बीएसएफ के अधिकारियों के साथ साझा किया गया है। सीएपीएफ की 100 कंपनियों को चुनावी ड्यूटी पर भेजा जा रहा है। पिछले साल तीन मई से मणिपुर में हिंसा का जो दौर शुरू हुआ था, वह अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। वहां पर दो समुदायों के बीच आज भी तनाव देखा जा रहा है। केंद्रीय बलों की तैनाती से वहां के लोगों में विश्वास पनपा था। वे खुद को सुरक्षित महसूस करने लगे थे। अब एकाएक मणिपुर से बीएसएफ और सीआरपीएफ की सौ कंपनियों को बाहर निकालने का आदेश जारी किया गया है।

लोगों ने किया बीएसएफ के जाने का विरोध
सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में दिखाया गया है कि मणिपुर में रात के समय लोगों ने बीएसएफ को वहां से हटाने का जोरदार विरोध किया है। लोगों द्वारा ‘जाने नहीं देंगे’ के नारे लगाए जा रहे थे। यह मामला सीमा सुरक्षा बल की 65वीं बटालियन से जुड़ा बताया जा रहा है। लोगों ने कहा, बीएसएफ ने हमें सुरक्षा दी, सहारा दिया है। हम बीएसएफ को यहां से जाने नहीं देंगे। अगर ये लोग यहां से चले गए, तो हमारी सुरक्षा कौन करेगा। हम असुरक्षित हो जाएंगे। एक ऐसा ही वीडियो, सीआरपीएफ की ए/214 बटालियन की कंपनी का भी देखने को मिला है। इस कंपनी को मणिपुर से पश्चिम बंगाल में चुनावी ड्यूटी के लिए रवाना होने का आदेश मिला था। दस अप्रैल को दीमापुर से एक स्पेशल ट्रेन के जरिए, इस कंपनी की रवानगी होनी थी। जैसे ही लोगों को यह बात पता चली कि यह कंपनी जा रही है, तो उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। जिस जगह पर कंपनी को ठहराया गया था, गांव की महिलाओं ने उस परिसर के मुख्य गेट पर धरना देना शुरू कर दिया। महिलाओं का कहना था कि उन्हें छोड़कर न जाएं। अगर जाओगे, तो हमारे ऊपर से गाड़ी लेकर निकल जाओ।

मणिपुर में एक-दो दिन में मतदान
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद कहते हैं, सरकार को इस मामले में बहुत सावधानी से अपनी प्राथमिकता तय करनी चाहिए। पहला सवाल तो यही है कि क्या मणिपुर में सब ठीक है। क्या वहां पर पूर्ण शांति बहाल हो गई है। लंबे समय से मणिपुर के विभिन्न इलाकों में केंद्रीय बल तैनात हैं। अब वहां पर हिंसा में कमी आ रही है। ऐसे में अगर केंद्रीय बलों को वहां से वापस बुलाया जाता है, तो स्थिति बिगड़ सकती है। मणिपुर में शांति को लेकर किस तरह के इनपुट मिल रहे हैं, तो इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां की एक लोकसभा सीट पर दो-दिन में मतदान होगा। वहां पर अभी खतरा बरकरार है। ऐसे में केंद्रीय सुरक्षा बलों को वापस बुलाना जोखिम भरा हो सकता है। जनता को स्थानीय पुलिस पर भरोसा नहीं है। एक समुदाय को असम राइफल पर विश्वास नहीं है। सीएपीएफ की कंपनियों को वहां से निकालना, एक गलत फैसला है।

चुनाव ड्यूटी के लिए नफरी पूरी करने में हो रही दिक्कत
लोकसभा चुनाव में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की जा रही है। सीआरपीएफ और दूसरे बलों को पर्याप्त नफरी पूरी करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नतीजा, इन बलों में ऐसी कोई जगह नहीं बची है, जहां से जवानों को चुनावी ड्यूटी पर न भेजा जा रहा हो। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बल मुख्यालयों से कहा है कि चुनावी ड्यूटी के लिए जवानों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करें। इस आदेश का पालन करने के लिए सुरक्षा बलों के सेक्टर हेडक्वार्टर और ग्रुप सेंटरों पर हलचल देखी जा रही है। अधिकारियों से कहा गया है कि चाहे जैसे भी हो, चुनावी ड्यूटी के लिए जवानों को फ्री किया जाए। जिनकी ट्रेनिंग अभी खत्म नहीं हुई है, उन्हें भी ग्रुप सेंटरों और सेक्टर हेडक्वार्टर पर भेजा रहा है। वजह, उन जगहों से स्थायी कर्मियों को चुनावी ड्यूटी पर भेज रहे हैं।

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