दुर्घटना पीड़ितों की मदद करें जनप्रतिनिधि


खबरें तो गर्मागर्म हैं। पलटूराम के नाम से बदनाम हुए नितीश कुमार ने एक बार लालू यादव के परिवारवाद को फिर पलट डाला और नवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 800 पृष्ठों से ज्यादा की रिपोर्ट और सैकड़ों साक्ष्यों व एक हजार फोटोग्राफ्स से प्रमाणित हो गया कि अकबर के शासन से 150 वर्ष पूर्व ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त कर वहां मस्जिद बना दी गयी थी। भारत जोड़ो न्याय यात्रा की मुहिम पर निकले राहुल गाँधी यात्रा में अपने डुप्लीकेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, यह कोरी अफवाह है या असलियत ? यह भी गर्म ख़बर है।

ये सब खबरें वातावरण में तैर रही हैं लेकिन एक आम भारतीय नागरिक के जीवन-मरण से जुडी ख़बर अब अख़बार की रद्दी बन चुकी है। ख़बर यह है कि गत शनिवार मुज़फ्फरनगर के भोपा थाना क्षेत्र की मजदूर महिला सीतादेवी की दुर्घटना में अकाल मृत्यु हो गयी। सीतादेवी के पति की 15 वर्ष पूर्व मौत हो गयी थी। तब से वह बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए मजदूरी करती थी। ग्राम नंगला बुजुर्ग में लकड़ी चिराई के कारखाने में लकड़ी काटने का काम करती थी। गत शनिवार को चिराई से बची लकड़ियां बुहारते हुए वह मशीन के पट्टे में फंस कर लहू-लुहान हो गयी और दुर्घटना स्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गयी।

लोगों ने विरोध स्वरूप जाम लगा दिया और लकड़ी के ठेकेदार के विरुद्ध मुक़दमा चलाने तथा बच्चों को मुआवजा देने की मांग की। 5 घंटों के जाम के बाद मृतका का पोस्टमार्टम हुआ। जैसा कि इस प्रकार की दुर्घटनाओं में होता है, सरकारी अमले के आश्वासन के बाद लोग अपने-अपने घरों को वापस चले गए। सीतादेवी के अनाथ बच्चों का पालन-पोषण कौन करेगा, ये अनुत्तरित प्रश्न है। गरीबों, मेहनतकशों व मजदूरी करने वाले स्त्री, पुरुषों, बच्चों के साथ ऐसे हादसे होते रहते हैं। आश्वासनों के बाद उनका कोई पुहाल पुरसाँहाल नहीं। अभी 22 जनवरी को खतौली क्षेत्र के ग्राम कैलावडा के अवैध पटाखा गोदाम में 2 मासूम बच्चे दीपांशु, पारस की दर्दनाक मृत्यु हो गयी। ये बच्चे पढ़ाई के बाद पटाखा पैकिंग की मजदूरी करते थे। नाबालिग बच्चों की अकाल मृत्यु पर लोगों ने बहुत शोर-शराबा मचाया। आश्वासन भी दिए गए। किन्तु क्या सीतादेवी और कैलावड़ा के नाबालिग बच्चों को न्याय मिल सकेगा ?

सरकारी मशीनरी कैसे कार्य करती है, यह सर्विदित है। जनप्रतिनिधियों का, विशेषकर सत्ता दल के नेताओं का कर्त्तव्य है कि वे पीड़ित परिवारों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए प्रयास करें। शासन की अनेक योजनाएं हैं। गरीब व निरक्षर लोग उनका लाभ नहीं उठा पाते। सत्तादल के अध्यक्ष, सांसद, विधायकों और जनप्रतिनिधियों का कर्त्तव्य है कि वे पीड़ितों तक पहुंचें और उन्हें आजीविका चलाने तथा बच्चों का भरणपोषण कराने में मदद दिलाएं।

गोविन्द वर्मा

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