पंजाब: भाजपा संत रविदास के दिखाए मार्ग पर चल रही है -मोदी

संत रविदास का जन्मोत्सव देशभर में पूरे जोश के साथ मनाया जा रहा है। संत रविदास को मानने वाले भक्त उनके मंदिरों में पहुंचकर भजन-कीर्तन और संगत कर रहे हैं। चुनावी बेला होने के कारण इन भक्तों में विभिन्न दलों के राजनेता भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के करोलबाग तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वाराणसी पहुंचे और संत रविदास की पूजा-अर्चना की। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी संत रविदास के जन्म स्थल पर पहुंचे। इसे दलित वोटरों को साधने की कोशिश बताया जा रहा है। यानी संत रविदास ने आजीवन जिस जातिवाद का विरोध किया था, राजनीतिक दलों ने उन्हें उसी जाति को साधने का हथियार बना लिया।

पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित मतदाता हैं। इनकी उपेक्षा कर पंजाब की राजनीति में कोई भी दल सत्ता की कुर्सी तक नहीं पहुंच सकता। चरणजीत सिंह चन्नी के वाराणसी पहुंचने को भी दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश बताया जा रहा है। चन्नी खुद दलित समुदाय से हैं और कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर चुकी है।

पंजाब की सियासत में दलित मतदाता लगातार अपने समुदाय का मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री देखने की इच्छा जताते रहे हैं, लेकिन पंजाबी जट सिखों की प्रधानता वाली राजनीति में उनकी यह मांग हमेशा अनसुनी कर दी गई। राहुल गांधी ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर उनका यह सपना पूरा कर दिया है। कांग्रेस के इस दांव ने उसे तमाम अंतर्विरोधों से बाहर निकालते हुए अचानक सत्ता की दौड़ में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है।

संत रविदास मंदिर में  प्रधानमंत्री मोदी

पीएम भी दलित मतदाताओं को साधते दिखे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पठानकोट की अपनी रैली में भी सबसे पहले संत रविदास को ही याद किया। उनके मंच पर भी संत रविदास की बड़ी प्रतिमा लगाकर दलित समुदाय को संदेश देने की कोशिश की गई। उन्होंने संत रविदास की पंक्तियों “ऐसा चाहूं राज मैं, मिले सबको अन्न। छोट-बड़े सब सम रहें, रविदास रहें प्रसन्न।” का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी सरकार वही काम कर रही है जो संत रविदास चाहते थे। उन्होंने वाल्मीकि और कबीर पंथ के संतों को भी नमन किया। उनकी इस कोशिश को भी पंजाब के दलित मतदाताओं को रिझाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इसके पूर्व बुधवार को सुबह वे करोलबाग के रविदास मंदिर पहुंचकर भजन-कीर्तन कर चुके थे।   

पूर्वांचल में भी अहम हैं दलित मतदाता

वहीं, यूपी के पूर्वांचल में भारी संख्या में रहने वाले दलित मतदाता भी यह तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं कि इस बार लखनऊ का ताज किसके सिर बंधेगा। यूपी चुनाव में भाजपा के लिए ये दलित मतदाता अवध और पूर्वांचल के क्षेत्रों में संजीवनी साबित हो सकते हैं। लिहाजा योगी आदित्यनाथ को वाराणसी के रविदास मंदिर में पहुंचने को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा इस बात की पुरजोर कोशिश कर रही है कि यदि मायावती इस चुनावी लड़ाई में कमजोर पड़ती हैं, तो उनके दलित समर्थक उसकी ओर मुड़ जाएं। भाजपा की यह कोशिश कितनी कामयाब रही, यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।

राहुल और प्रियंका गांधी सीर गोवर्द्धन में संत रविदास को नमन करने पहुंचे

कांग्रेस रही दलितों की हितैषी

दलित महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष रितु चौधरी ने अमर उजाला से कहा कि उनकी पार्टी ने हमेशा दलितों को आगे बढ़ाने का काम किया है। प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने अंबेडकर को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर दलितों की प्रतिभा का सम्मान करने का काम किया। उन्होंने कहा कि चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित कर राहुल गांधी नेहरू की उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक दलित को मुख्यमंत्री बनाना और उसे अगले मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करने की खुशी पंजाब के हर दलित मतदाता के चेहरे पर पढ़ी जा सकती है। उन्होंने कहा कि पंजाब में कांग्रेस इस बार अभूतपूर्व बहुमत से जीतेगी।   

रितु चौधरी ने कहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की आज की वाराणसी यात्रा को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि प्रियंका गांधी हर वर्ष संत रविदास की जन्मस्थली पर पहुंचती रही हैं। वे हाथरस-फाफामऊ से लेकर आगरा तक हर बार दलितों के अधिकारों के लिए लड़ते हुए देखी गई हैं, इसलिए पूरा दलित समुदाय उनकी भावनाओं से स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करता है।   

पीएम ने हमेशा दलितों को आगे बढ़ाया

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल में दलितों-पिछड़ों को ही सबसे ज्यादा आगे बढ़ाने का काम किया। उनके कार्यकाल में ही अंबेडकर को सबसे ज्यादा सम्मान दिया गया तो वाराणसी में भगवान रविदास के जन्मस्थल को भी विकसित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पीएम की यह कोशिश अंबेडकर और संत रविदास के सपनों को जमीन पर उतारने जैसा है।   

संतों को जातिवाद के लिए उपयोग न करते तो बेहतर होता

हालांकि, इन संतों के नाम पर राजनीति को अनेक लोग उचित भी नहीं मानते। कबीरपंथ को अपना आदर्श मानने वाले अनिल कुमार ने कहा कि इन संतों ने हमेशा जातिवाद का विरोध किया। उन्होंने मनुष्य रूप में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को एक अच्छा इंसान बनने की सीख दी। उन्होंने बताया कि कबीरदास जी ने कहा था, “सब जन्मे एक बूंद से, सबकी मिट्टी एक। मन में दुविधा पड़ गई, हो गए रूप अनेक।” संत रविदास जी ने कहा था, “जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात। रैदास मनुज न जुड़ सके, जब तक जाति न जात।” उन्होंने कहा कि इस तरह के उच्च आदर्श को दिखाने वाले संतों को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।

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