आकस के गठन के बाद टोक्यो में होने वाली क्वाड की बैठक बहुत अहम

Quad Summit 2022: जापान की राजधानी टोक्यो में होने वाले क्वाड सम्मेलन को लेकर सबसे ज्यादा निगाहें चीन की लगी हुई हैं, क्योंकि चीन को डर इस बात का सता रहा है कि अगर भारत ऑस्ट्रेलिया जापान और अमेरिका मिलकर इंडो पेसिफिक रीजन में अपनी ताकत को बड़ा करेंगे तो चीन के लिए सबसे ज्यादा मुसीबतें पैदा होंगी। इसके अलावा दो साल पहले बनाए गए ‘आकस’ को लेकर भी चीन डरा हुआ है। हालांकि, विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि भारत क्वाड के माध्यम से हथियारों की दौड़ से अलग आर्थिक रूप से इंडो पेसिफिक रीजन को आगे बढ़ाने की न सिर्फ वकालत कर रहा है, बल्कि सारे प्रयास भी उसी दिशा में चल रहे हैं। जबकि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की मंशा इस दिशा में सैन्य शक्तियों को बढ़ाने की ज्यादा है। 

विदेशी मामलों के जानकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिषेक सिंह कहते हैं कि क्वाड के गठन के बाद से चीन सशंकित ही रहा है। रही सही कसर 2020 में बनाए गए ऑस्ट्रेलिया यूके और यूएस के आकस(AUKUS) समूह ने पूरी कर दी। अभिषेक बताते हैं कि भारत का पूरा फोकस इंडो पेसिफिक रीजन में आर्थिक दृष्टिकोण से सब कुछ चाक चौबंद करने का है। यही वजह है कि भारत क्वाड कि पूर्व बैठकों में तमाम अलग-अलग तरह के मुद्दों के साथ वह किसी कंट्रोवर्सी में ना फंस कर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर तटीय देशों से बेहतर व्यापारिक समझौते और व्यापारिक दृष्टिकोण से अपने हितों को साधने की कोशिश करता रहा है। हालांकि, विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि क्वाड समूह में शामिल चार देशों में दो देश ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इंडो पेसिफिक क्षेत्र में किसी न किसी माध्यम से सैन्य शक्तियों को बढ़ाने की मंशा जाहिर करते रहे हैं, जबकि भारत ने खुले तौर पर इन देशों की इस मंशा को कभी भी हवा देने की कोशिश नहीं की। 

आकस के गठन के बाद टोक्यो में होने वाली क्वाड की बैठक बहुत अहम हो जाती है। विदेशी मामलों के जानकार प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि आकस का गठन उसी मंशा को पूरा करने के लिए किया गया है, जिसको क्वाड के माध्यम से परोक्ष या अपरोक्ष रूप से पूरा नहीं किया जा सका है। विदेशी मामलों के जानकारों के मुताबिक, पश्चिमी देश खासतौर से अमेरिका और यूरोप चीन की सैन्य शक्तियों और सैन्य ताकतों को चुनौतियां देने के लिए इंडो पेसिफिक रीजन में बड़ी हलचल बढ़ाने की फिराक में रहते हैं। जबकि भारत इस मामले में डिप्लोमेटेकली पूरे इंडो पेसिफिक रीजन में आर्थिक व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने और दुनिया को एक नए नजरिए से व्यवसाय के लिहाज से आगे बढ़ने की बात करता रहता है। 

विदेशी मामलों के जानकार और इंडो चाइना रिलेशंस ऑन डिप्लोमेटिक टॉक के पूर्व कन्वीनर सुचित श्रीधर कहते हैं कि भारत बहुत सोच समझकर हर चीज में कदम उठा रहा है जबकि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस मामले में व्यवहार तो क्वाड की स्थापना के अनुरूप ही करते हैं, लेकिन उनकी मंशा कहीं न कहीं जाहिर हो जाती है।

दुनिया के अलग-अलग देशों में तमाम तरह के मिशन से जुड़े रहकर काम करने वाले एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक कहते हैं कि निश्चित तौर पर क्वाड हो या आकस, चीन के लिए चुनौती ही रहे हैं। वह कहते हैं की जिस तरह आकस के गठन के बाद आस्ट्रेलिया को यूके ने न्यूक्लियर सबमरीन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की है उससे चाइना डरा हुआ है। उसको इस बात की आशंका है कि आकस के माध्यम से अमेरिका और यूरोप उसके इलाके वाले समुद्रों में अपनी न सिर्फ पैनी निगाह लगाए हुए हैं बल्कि आकस  और क्वाड को मिनी नाटो के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिषेक कहते हैं कि इसी लिहाज से टोक्यो में होने वाली क्वाड की बैठक महत्वपूर्ण हो जाती है। उनका कहना है कि चीन इस बात से सशंकित है कि क्वाड और आकस ग्रुप के सदस्यों में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका न सिर्फ कामन है, बल्कि भारत पर अपनी सीमा को सुरक्षित रखने के लिए सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए भी दबाव डाल सकता है। क्योंकि जिस तरीके से चीन की बढ़ती ताकत को अमेरिका सीधे तौर पर अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है, उसी तरीके से बीते कुछ सालों में ऑस्ट्रेलिया की ओर से भी ऐसे ही संकेत मिलने लगे हैं। 

विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में अमेरिका और यूके ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर इंडोप्लास्ट के जीवन में सनी शक्तियों करना सर विस्तार करेंगे बल्कि अपनी ताकत की नुमाइश भी करेंगे। ऐसे में चीन को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं भारत भी टोक्यो में होने वाली बैठक के बाद में इस अभियान का हिस्सा ना बन जाए। हालांकि विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि क्वाड और आकस की स्थापना का मकसद पूरी तरीके से अलग है।।इसलिए इसकी संभावना बिल्कुल नजर नहीं आती कि क्वाड की बैठक के दौरान आकस को लेकर के कोई ज्यादा चर्चा होगी। हालांकि जब अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने की बात होगी तो निश्चित तौर पर इंडो पेसिफिक तटीय क्षेत्रों के देशो के लिए ऐसे किसी भी संगठन के सदस्य के तौर पर शामिल होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

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