राजा बेटा-राजा बाबू-छोटा पप्पू… कांग्रेस नेता विक्रमादित्य सिंह के लिए क्या-क्या बोल गईं कंगना

लोकसभा चुनाव में मतदान की तारीख नजदीक आ रही हैं। पहले दो चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है। पार्टियां प्रचार में जुट चुकी हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। उम्मीदवार घर-घर जाकर वोट भी मांग रहे हैं। इन उम्मीदवारों में कुछ ऐसे हैं जिनकी चर्चा सबसे ज्यादा है। ऐसी ही एक उम्मीदवार हैं कंगना रनौत। फिल्म अभिनेत्री कंगना को भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। 

हमारी खास पेशकश ‘सीट का समीकरण’ में आज इसी मंडी सीट की बात करेंगे। इसके चुनावी इतिहास की बात करेंगे। बात करेंगे यहां से जीते उम्मीदवारों की, पिछले चुनाव में इस सीट पर क्या हुआ था? इस बार कैसे समीकरण बन रहे हैं? ये भी जानेंगे….

पहले मंडी के बारे में 
हिमाचल प्रदेश से लोकसभा के चार सांसद चुने आते हैं। इन्हीं में से एक मंडी लोकसभा सीट भी है। दो रियासतों मंडी और सुकेत के विलय के साथ मंडी जिले का गठन 1948 में किया गया था। मंडी और सुकेत के राजा बंगाल के सेन वंश (चन्द्रवंशी राजपूतों की परम्परा) से ताल्लुक रखते हैं। वे महाभारत के पांडवों से अपने वंश की कड़ी जोड़ते हैं। माना जाता है कि इनके पूर्वजों ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में 1,700 वर्षों तक शासन किया था। अजबर सेन नामक राजा ने 1527 ईस्वी में मंडी शहर को बसाया था। 17वीं शताब्दी में सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह मंडी पहुंचे थे। इस तरह से मंडी अपने साथ इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियां जोड़े हुए है।

शुरुआती चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की
अब वापस चलते हैं मंडी की सियासत को समझने, साल 1951-52 में देश के पहले आम चुनाव हुए तब मंडी नाम से लोकसभा सीट नहीं थी। पहले चुनाव में मंडी महासू नाम से सीट थी जिस पर कांग्रेस से अमृत कौर को जीत मिली थी। 

अगले आम चुनाव, जो 1957 में हुए, उसमें मंडी सीट अस्तित्व में आई। इस चुनाव में कांग्रेस से जोगिंदर सेन को जीत मिली। सेन ने निर्दलीय उम्मीदवार आनंद चंद को 24,420 वोट से शिकस्त दी थी। 

1962 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ललित सेन को जीत मिली। सेन ने स्वतंत्र पार्टी की उम्मीदवार अंबिका कुमारी को 26,256 मतों से हराया था। 1967 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के ललित सेन जीते। सेन ने इस बार निर्दलीय उम्मीदवार आई. सिंह को 34,265 वोट से हराया था।

Election 2024: Mandi Lok Sabha Constituency Profile And History

मंडी की राजनीति में वीरभद्र सिंह की एंट्री 
1970 के दशक की शुरुआत में मंडी की राजनीति में एक नए चेहरे का प्रवेश होता है। 1971 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले वीरभद्र सिंह को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया। वीरभद्र बुशहर राज्य के राजा रहे सर पदम सिंह के पुत्र थे। 1971 में हुए चुनाव में वीरभद्र ने 89,177 वोट की बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने यह जीत लोक राज पार्टी हिमाचल प्रदेश के उम्मीदवार मंधर लाल को हराकर दर्ज की। 

आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार वीरभद्र सिंह को मंडी सीट पर हार मिली। जनता लहर में यहां से भारतीय लोक दल के गंगा सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी वीरभद्र सिंह को 35,505 वोटों से हरा दिया। तीन साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में दोनों उम्मीदवार फिर आमने-सामने थे। इस बार नतीजा बदल गया। वीरभद्र सिंह ने गंगा सिंह से 1977 में मिली हार का बदला ले लिया। कांग्रेस के टिकट पर उतरे वीरभद्र सिंह ने जनता पार्टी के टिकट के गंगा सिंह को 58,354 वोट से हरा दिया। 

1984 का लोकसभा चुनाव आते-आते वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने यहां से सुखराम को अपना उम्मीदवार बनाया। सहानुभूति लहर पर सवार होकर सत्ता में आई कांग्रेस को मंडी से एक बार फिर बहुत बड़ी जीत मिली। कांग्रेस प्रत्याशी सुख राम ने भारतीय जनता पार्टी के मधुकर को 1,31,651 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी। सुख राम बाद में कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बने। 

भाजपा को पहली जीत 1989 में मिली 
1989 का लोकसभा चुनाव आता है और मंडी की राजनीति में बदलाव लाता है। इस चुनाव में भाजपा ने पहली बार सफलता हासिल की। पार्टी की तरफ से उतरे उम्मीदवार महेश्वर सिंह ने कांग्रेस नेता सुख राम को 28,069 मतों से हरा दिया। 

दो साल बाद हुए 1991 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सुखराम और महेश्वर सिंह आमने-सामने थे। इस बार सुखराम ने मंडी सीट पर कांग्रेस की वापसी कराई। उन्होंने 1989 की हार का बदला भी ले लिया। इस चुनाव में सुख राम ने भाजपा के महेश्वर सिंह को 26,627 वोटों से शिकस्त दी। इस जीत के बाद सुखराम नरसिम्हा राव कैबिनेट मंत्री भी रहे। उनके पास संचार राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार था। इस दौरान उन पर बड़े घोटाले का आरोप लगा। मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि जांच का जिम्मा सीबीआई को देना पड़ा। सीबीआई ने जांच के दौरान सुखराम के घर से 3.6 करोड़ रुपये बरामद किए। ये रुपये सूटकेस और बैग में भरे हुए थे। उस वक्त सुखराम के घर से 2.45 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। जबकि हिमाचल के मंडी स्थित बंगले पर छापेमारी में सीबीआई टीम को वहां से 1.16 करोड़ रुपये मिले थे।

1996 में सुख राम ने मंडी सीट पर तीसरी बार जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने भाजपा के अदन सिंह ठाकुर को 1,53,223 वोटों के बड़े अंतर से हराया। हालांकि, घोटाले में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद उन्होंने 1997 में हिमाचल विकास कांग्रेस बनाई।

1998 के लोकसभा चुनाव में सुखराम हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर यहां से उतरे। वहीं, भाजपा ने मंडी के पूर्व सांसद महेश्वर सिंह को टिकट दिया तो कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को मैदान में उतारा। जीत भाजपा के महेश्वर सिंह को मिली। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को हरा दिया। भाजपा यह चुनाव 1,31,832 वोटों से जीत गई। वहीं खुद की पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरे सुखराम अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। उन्हें महज 8,304 वोट से संतोष करना पड़ा।    

1999 के चुनाव में भी भाजपा के महेश्वर सिंह तीसरी बार मंडी सीट से जीते। इस बार उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर उतरे कौल सिंह को 1,31,025 वोटों से परास्त किया। 

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प्रतिभा सिंह ने हार का बदला लिया
साल 2004, एक बार फिर वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह और भाजपा के महेश्वर सिंह आमने-सामने थे। इस बार प्रतिभा ने 1998 में मिली हार का बदला ले लिया।  कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने भाजपा के महेश्वर सिंह को 66,566 वोटों से हरा दिया। 

2009 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को उतारा। नतीजे आए तो एक बार फिर कांग्रेस दिग्गज को जीत मिली। उन्होंने भाजपा के पूर्व सांसद महेश्वर सिंह को 13,997 वोटों से हराकर जीत दर्ज की। 2012 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और वीरभद्र सिंह एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।

मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी। इसके बाद 2013 में हुए उप-चुनाव में यहां से उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह फिर से जीतकर लोकसभा पहुंचीं। प्रतिभा सिंह ने भाजपा के जयराम ठाकुर को एक लाख 36 हजार से ज्यादा वोट से हराया। यही जयराम ठाकुर आगे चलकर हिमाचल के मुख्यमंत्री भी बने। 

2014 और 2019 में भाजपा जीती
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के एक बार फिर प्रतिभा सिंह को यहां से उम्मीदवार बनाया। उनके सामने थे भाजपा के रामस्वरूप शर्मा। रामस्वरूप शर्मा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री की पत्नी को शिकस्त दे दी। रामस्वरूप शर्मा को 3,62,824  वोट मिले। वहीं, प्रतिभा सिंह को 3,22,968 वोट से संतोष करना पड़ा। इस तरह भाजपा के राम स्वरुप शर्मा ने कांग्रेस की पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को 39,856 वोटों से हरा दिया।  

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर बड़ी जीत दर्ज की। भाजपा की इस सफलता में मंडी की जीत में शामिल रही, जहां दूसरी बार भाजपा से राम स्वरुप शर्मा जीते। भाजपा उम्मीदवार ने इस बार कांग्रेस के आश्रय शर्मा को 4,05,459 वोटों से हराया। मंडी के चुनावी इतिहास में यह वोटों के लिहाज से सबसे बड़ी जीत थी। 

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उप-चुनाव में जीतीं प्रतिभा 
2021 में मंडी सांसद रामस्वरूप शर्मा का निधन हो गया। इसके बाद मंडी सीट पर उप-चुनाव हुआ। इस चुनाव में भाजपा ने ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) खुशाल ठाकुर को उतारा, जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह थीं। उप-चुनाव में प्रतिभा सिंह ने भाजपा के खुशाल ठाकुर को हरा दिया। इस तरह प्रतिभा तीसरी बार मंडी लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं।

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कंगना के सामने कौन?
अब बात 2024 के चुनाव की कर लेते हैं। इस बार भाजपा ने मंडी लोकसभा सीट से बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को अपना उम्मीदवार बनाया है। कंगना के उम्मीदवार बनने के बाद यह सीट सुर्खियों में है। कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर भले ही यहां अपने चेहरे का एलान नहीं किया है लेकिन माना जा रहा है कि विक्रमादित्य सिंह यहां से कांग्रेस उम्मीदवार हो सकते हैं। विधायक विक्रमादित्य सिंह ने दिल्ली में पार्टी हाईकमान से मुलाकात भी की है। विक्रमादित्य सिंह मौजूदा कांग्रेस सांसद प्रतिभा सिंह के बेटे हैं। विक्रमादित्य सिंह का परिवार मंडी लोकसभा सीट का छह बार प्रतिनिधित्व कर चुका है।

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