राज्यसभा चुनाव: कांग्रेस पार्टी हरियाणा में चारों खाने चित

राज्यसभा चुनाव के नतीजों ने हरियाणा की राजनीति में भूचाल ला दिया है। मुख्य विपक्षी दल यानी कांग्रेस पार्टी इस चुनाव में चारों खाने चित हो गई है। रणदीप सुरजेवाला, जिस डर से राजस्थान में राज्यसभा चुनाव लड़ने गए थे, अब अजय माकन उस डर का शिकार बन गए। हरियाणा से हुई माकन की हार ने दस साल तक प्रदेश के सीएम रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की साख पर बट्टा लगा दिया है। 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में भी भूपेंद्र हुड्डा सहित 14 कांग्रेसी विधायकों के वोट रद्द हो गए थे। इस बार कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें अजय माकन को विजयी बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी, जिसमें वे फेल हो गए।

दूसरी तरफ मुख्यमंत्री मनोहर लाल के दोनों हाथों में लड्डू आ गए हैं। उन्होंने एक तीर से कई निशाने लगा दिए हैं। कुलदीप बिश्नोई, जिन पर क्रॉस वोटिंग का आरोप है, उन्हें पार्टी के सभी पदों से निलंबित कर दिया गया है। उधर, सीएम मनोहर लाल ने मौके की नजाकत को भांपते हुए कह दिया, केंद्र सरकार की नीतियों एवं उपलब्धियों और भाजपा की राष्ट्र हितैषी विचारधारा से प्रभावित होकर कुलदीप बिश्नोई ने अंतरात्मा की आवाज सुनकर खुलकर वोट दिया है। दूसरी तरफ, अब प्रदेश की राजनीति में ‘सांप, अजगर और फन’ का खेल भी शुरू हो गया है।

कुलदीप बिश्नोई ने अपना बदला ले लिया

हरियाणा में कांग्रेस पार्टी गुटबाजी से त्रस्त है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्यसभा चुनाव में पार्टी के कद्दावर नेता रणदीप सुरजेवाला को अपना गृह प्रदेश छोड़कर राजस्थान जाना पड़ा। उन्हें डर था कि हरियाणा से वे राज्यसभा में नहीं पहुंच पाएंगे। प्रदेश में कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी, कैप्टन अजय यादव, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला का भूपेंद्र हुड्डा के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा है। ये अलग बात है कि इनमें से कई नेता, हुड्डा के मुख्यमंत्री कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। कुलदीप के पिता स्वर्गीय भजनलाल ने भी लंबे समय तक प्रदेश में सीएम की कमान संभाली थी।

हुड्डा के साथ अनबन के चलते पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर भी पार्टी छोड़ चुके हैं। कुमारी शौलजा को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया, लेकिन उनकी भी नहीं चली। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी ने हुड्डा के खास रहे उदयभान को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया था। बाकी खेमों को साधने के लिए पार्टी ने किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी, शैलजा के भरोसेमंद रामकिशन गुर्जर, जितेंद्र भारद्वाज व सुरेश गुप्ता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। कुलदीप बिश्नोई चाहते थे कि उन्हें यह पद सौंपा जाए, लेकिन पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्षों की सूची में भी उनका नाम शामिल नहीं किया। अब कुलदीप बिश्नोई ने अपनी अंतर आत्मा की आवाज सुनकर राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर दी। नतीजा, अजय माकन हार गए और कुलदीप का बदला पूरा हो गया।

सीएम मनोहर लाल ने एक साथ साधे कई निशाने

भाजपा में सीएम मनोहरलाल खट्टर का कद बढ़ गया है। प्रदेश में राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव हुआ है। तीन उम्मीदवारों में से दो प्रत्याशी जीत गए हैं। इनमें से एक भाजपा के उम्मीदवार कृष्ण लाल पंवार और दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा हैं। खट्टर ने अपनी रणनीति से कांग्रेस पार्टी को शिकस्त दे दी। साथ ही पार्टी की झोली में दो राज्यसभा सांसद भी डाल दिए। भाजपा ने दूसरी पसंद के तौर पर कार्तिकेय शर्मा को विजयी दिला दी। साथ ही प्रदेश कांग्रेस में भी जबरदस्त हलचल मचा दी। कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई को निलंबित कर दिया गया। प्रदेश की राजनीति के विश्लेषक रविंद्र कुमार सैनी बताते हैं, सीएम खट्टर ने राज्यसभा के जरिए प्रदेश में लोकसभा व विधानसभा चुनाव के समीकरण तैयार कर दिए हैं। हालांकि राजनीति, संभावनाओं का खेल है, पता नहीं कब किसका दांव लग जाए। मौजूदा समय की बात करें तो खट्टर ने एक साथ कई निशाने साध दिए हैं। कुलदीप बिश्नोई को भाजपा में शामिल कराकर वे बड़ा उलटफेर कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव में हिसार सीट से कुलदीप की दावेदारी मजबूत हो चली है। अगर भाजपा, 2024 का विधानसभा चुनाव भी गठबंधन में लड़ती है तो उसे बड़ा फायदा हो सकता है। अभी तक भाजपा को ‘नॉन जाट’ की ही पार्टी कहा जाता है। ऐसे में कुलदीप बिश्नोई और कार्तिकेय शर्मा, ये दो बड़े चेहरे पार्टी को आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचा सकते हैं।

सांप, अजगर के खेल में अब कैसे बचेंगे ‘हुड्डा’

राज्यसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कुलदीप बिश्नोई ने ट्वीटर पर लिखा, फन कुचलने का हुनर आता है मुझे, सांप के खौफ से जंगल नहीं छोड़ा करते। ये बात उन्होंने कहीं न कहीं पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के संदर्भ में लिखी है। इस ट्वीट में कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर, जो अब ‘आप’ में शामिल हो चुके हैं, ने भी अपनी प्रतिक्रिया दे दी। उन्होंने कुलदीप बिश्नोई के ट्वीट के जवाब में लिखा, सांप का फन कुचलने से क्या होगा, अजगर तो अभी जिंदा है। बता दें कि तंवर ने भी हुड्डा के साथ मतभेद गहराने के बाद गत विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़ दी थी। इन ट्वीट का सीधा मतलब, हुड्डा की घेराबंदी है।

2016 में भी हुड्डा उस वक्त अपने विरोधियों के निशाने पर आ गए थे, जब राज्यसभा चुनाव में 14 कांग्रेसी विधायकों के वोट रद्द हुए थे। मीडिया हाउस के मालिक सुभाष चंद्रा, बहुमत न होते हुए भी राज्यसभा में पहुंच गए। जानकारों का कहना है कि हुड्डा, सीएम की कुर्सी गंवाने के बाद भी लगातार प्रदेश कांग्रेस को अपने प्रभाव क्षेत्र में रखते रहे हैं। अधिकांश विधायक, उन्हीं के खेमें में बताए जाते हैं। अजय माकन की हार के बाद अब प्रदेश के बाकी धड़ों के नेताओं के विरोध का सामना उन्हें करना पड़ेगा। साथ ही कांग्रेस हाईकमान के समक्ष भी उन्हें जवाब देना होगा। राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विधायकों को रायपुर के एक रिजॉर्ट में रखना, मगर इसके बाद भी क्रॉस वोटिंग होना, कहीं न कहीं उनकी साख पर बट्टा लगाएगी। प्रदेश में कांग्रेस के 31 विधायक होने के बावजूद अजय माकन को 29 वोट ही मिल सके और वे हार गए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here