वीरेन्द्र वर्मा विचार मंच, मुजफ्फरनगर-शामली के संस्थापक, भाई उमादत्त शर्मा जी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के जाज्वल्यमान नक्षत्र रहे ईमानदारी और सादगी-सरलता की साक्षात प्रतिमूर्ति पूर्व राज्यपाल वीरेंद्र वर्मा जी की 15वीं पुण्यतिथि पर अपने फेसबुक अकाउंट पर सादर स्मरण किया है। भाई शर्मा जी कई दशकों से वर्मा जी जैसे आदर्श पुरुष की स्मृति को अक्षुण्य बनाने के लिए तत्पर और सजग रहते हैं, जिसके लिए वे आदर के पात्र हैं।
वीरेन्द्र वर्मा एवं बाबू नारायण सिंह (पूर्व उप मुख्यमंत्री) जी से पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा के भातृवत संबंध थे। जब पिताश्री को इलाज के लिए सन् 1986 में दिल्ली के जीबी पन्त अस्पताल ले जाया जा रहा था तो पिताश्री ने कहा कि अस्पताल ले जाने से पूर्व मुझे वर्मा जी से मिलवाओं। तब वर्मा जी राजयसभा के सदस्य थे। एम्बुलेंस को उनके आवास पर ले जाया गया। डॉ. एसकेडी भारद्वाज, आचार्य गुरुदत्त आर्य एवं ‘देहात’ के प्रबंधक जयनारायण ‘प्रकाश’ (पटवारी जी) साथ थे। दोनों मित्रों की यह अंतिम मुलाकात थी।
पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा और वीरेंद्र वर्मा जी की पहली भेंट 1948 में जाट कॉलेज के हिन्दी-संस्कृत के अध्यापक रामपाल सिंह शास्त्री ‘कुश’ के माध्यम से हुई। दरअसल तब वर्मा जी जिला बोर्ड के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे और अंसारी रोड स्थित पालीवाल परिवार की किराये की बड़ी कोठी में रहते थे। उनके बराबर में कुँवर शान्ति स्वरूप (ऑनरेरी मजिस्ट्रेट) रहते थे।
वर्मा जी जीप स्वयं चलाते थे, ड्राइवर साथ चलता था। एक दिन शामली जाते समय जब वर्मा जी की जीप सरवट गेट चौराहे पर पहुंची तो एक व्यक्ति से टकरा गई। उसे कुछ चोटें पहुंची। मुजफ्फरनगर कोतवाली पुलिस ने वर्मा जी के बजाय जीप के ड्राइवर का चालान कर दिया। पिताश्री ने “देहात” में खबर छापी कि जब वीरेंद्र वर्मा जीप चला रहे थे, तब पुलिस ने जीप चालक का चालान क्यूं किया? खबर से हलचल मची तो वीरेंद्र वर्मा जी पिताश्री के परिचित शास्त्री जी को साथ लेकर पिताश्री के पास पहुंचे और बताया कि मामला तो ड्राइवर के और घायल व्यक्ति के बयानों के बाद निपट गया है। इसके बाद पिताश्री और वर्मा जी के बीच अटूट मित्रता (जिसे भाईचारा कहना अधिक उपयुक्त होगा) जीवनपर्यन्त बना रहा। वर्मा जी जब भी मुजफ्फरनगर होते तो ‘देहात भवन’ अवश्य आते थे।
मैं वीरेंद्र वर्मा और बाबू नारायण सिंह को पिता तुल्य मानता हूँ, और सदा आदर करके स्मरण करता हूँ। वर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा से नमन्!
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’