छठ पूजा के लिए यमुना की सफाई की मांग वाली याचिका पर एससी का सुनवाई से इनकार

नई दिल्ली: लोकसभा व विधानसभा चुनावों में हर बार निर्दलीय प्रत्याशियों की तरह राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिह्न बदलने की मांग को लेकर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई. कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए याचिका को जुर्माने के साथ खारिज कर दिया. साथ ही कोर्ट की ओर से याचिकाकर्ता पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है.

सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा कि मुकदमेबाजी कोई शौक नहीं हो सकता है. दरअसल, लोकसभा व विधानसभा चुनावों में हर बार निर्दलीय प्रत्याशियों की तरह राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिह्न भी बदलने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी. यह जनहित याचिका वकील श्रद्धा त्रिपाठी की ओर से दायर की गई थी.

याचिका में कहा गया था कि जिस तरह हर बार आम चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशियों का चुनाव चिह्न बदल दिया जाता है. उसी तरह साल 1961 के सम्बंधित चुनाव नियमों के तहत, राजनीतिक दलों के आरक्षित चुनाव चिह्न भी हर बार चुनाव में बदले जाने चाहिए. चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न ना आवंटित करें, बल्कि रिटर्निंग अफसर द्वारा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह प्रदान किया जाए.

वहीं, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट धार्मिक नामों और चुनाव चिह्न वाली राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है. कोर्ट ने चार हफ्ते में जवाब मांगा है. सैयद वसीम रिजवी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाया है. सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राजनीतिक पार्टियों को पक्षकार बनाने की इजाज़त दे दी है. 

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