बहुजन समाज पार्टी की मालकिन मायावती ने अचानक अपने उत्तराधिकारी, जो उनका भतीजा आकाश आनन्द है, को एक ही झटके में होश में ला दिया है। भतीजे को पांच मास पहले ही अपना उत्तराधिकारी व राष्ट्रीय संयोजक बनाया था। पारिवारिक राजनीति की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मायावती कुछ वर्षों से आकाश को उसी प्रकार प्रशिक्षित कर रही थीं जैसे जवाहर लाल नेहरू इन्दिरा गांधी को करते थे। विदेश से पढ़ कर आये भतीजे आकाश को मायावती खानदानी सियासत को जारी रखने के लिए जायदाद के रूप में पार्टी उसके हवाले करेंगी, बसपा के कार्यकर्ताओं को यह पक्का भरोसा था।
खुद को उत्तराधिकारी के रूप में और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक पद से हटाये जाने के निर्णय का स्वागत करते हुए आकाश ने कहा है कि मैं बुआ के फैसले को सही मानता हूँ। मायावती कहती हैं कि आकाश अभी वरिपक्व नहीं हुआ है और आकाश ने बुआ के कदम को सही बताते हुए अपनी परिपक्ववता का परिचय दे डाला। आकाश का यह कथन उसकी समझदारी का प्रतीक है। उसने बुआ की सल्तन पर कब्जे की उम्मीद नहीं छोड़ी है।
सीतापुर के जिस भाषण के संदर्भ में आकाश को हटाने की बातें कही जा रही हैं, उसमें वह अपनी बुआ को प्रधानमंत्री बनाने की बात कह कर बसपाइयों की भीड़ से बार-बार तालियां बजवा रहा था। भाषण में लटके-झटके और सब्जबाग दिखा कर दलितों की वोट कैसे इकट्ठी की जायें, इस कला का प्रदर्शन आकाश बड़ी बुद्धिमता से कर रहा था। नरेन्द्र मोदी जैसे ‘तानाशाह’ को जमीन में गाड़ना, कुत्ते की मौत मारना, जूते मारने जैसे जुमले और मोदी के प्रति तू-तड़ाक की भाषा इस्तेमाल करने में राहुल, ओवैसी, केजरीवाल, पवन खेड़ा, अखिलेश, संजय राउत कब चूकते हैं? मोदी जैसे ‘तानाशाह’ के प्रधानमंत्री रहते तो यह सब चलता है।
हमने कैराना और मुजफ्फरनगर में मायावती की अनेक सभायें कवर की हैं। चरथावल क्षेत्र के त्यागी-बहुल ग्राम की चुनावी सभा में मायावती के मुंह से कहते सुना- ‘यहां कोई त्यागी, जाट, राजपूत, गुज्जर बैठा हो तो उठ कर चला जाए। हमें उनकी वोट नहीं चाहिए।’ तिलक, तराजू और तलवार, इनके मारो जूते चार के नारे भी खूब लगते थे। मायावती ऐसा सब कुछ कह और कर चुकी हैं जो उनका भतीजा अब कर रहा है।
आकाश में विरोधी को गाली गलौज करने और लच्छेदार भाषणों से अपनी बिरादरी के लोगों को मैस्मराइज करने की जो कला है, उसके बल पर वह एक न एक दिन मायावती की विरासत पर कब्जा जरूर करेगा। कारण यह है कि भारत में अभी जात-बिरादरी की राजनीति चलनी है। आकाश को उस दिन का इंतज़ार रहेगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’