बीमार अस्पताल, ये मुनाफाखोर डॉक्टर !

अभी 16 दिसम्बर को लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के 28वें दीक्षान्त समारोह में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने डिग्री पाने वाले डॉक्टरों से भावनापूर्ण अभिभाषण देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में रोगी दरिद्र होता है। अस्पताल मन्दिर और डॉक्टर उसका पुजारी है। डॉक्टरों को इसी भाव से समाज की सेवा करनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल और संस्थान की कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल ने कहा कि आप की सफलता में माता-पिता के साथ ही समाज का भी योगदान है अतः अब डॉक्टर बनने पर आप समाज का भी ऋण चुकायें। उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ब्रिजेश पाठक ने डॉक्टरों से कहा कि वे मरीजों से अच्छा व्यावहार करें।

ये ज्ञान भरी मीठी-मीठी बातें स्टेज से सुनने में बड़ी अच्छी लगती हैं लेकिन ज़मीनी हक़ीकत क्या है? डॉक्टर तैयार करने वाले मेडिकल कॉलेजों को नेता, काला धन कमाने वाले पूंजीपति और धोखाधड़ी के अभ्यस्त सफेद‌पोश बद‌माश संचालित करते हैं। कुछ मेडिकल कॉलेज तो ऐसे हैं जो छात्रों के अभिभावकों से लाखों रुपये झटक कर घर बैठे डिग्रियां बांट देते हैं। राष्ट्रीय और बड़े अखबार झोलाछाप डॉक्टरों व फर्जी मेडिकल कॉलेजों के रंगीन विज्ञापन छाप कर साल में दो-चार बार उगाही कर लेते हैं, लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ जो ठहरे !

उत्तर प्रदेश में आयुष कॉलेजों में होने वाला घोटाला सामने आया है। इन नाम-निहाद मेडिकल कॉलेजों में नियम कायदों को धता बता कर दाखिले कराये जाते हैं। जांच में पता चला कि उत्तरप्रदेश के 50 से अधिक धोखेबाज़ आयुष विद्यालयों में 850 फर्जी दाखिले हुए हैं। आयुष विद्यालयों की धोखाधड़ी में 15 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। घोटाला इतना बड़ा और संगीन है कि सरकार मामले को सी.बी.आई को सौंपने का विचार कर रही है।

भारत में चिकित्सकों की कमी और डॉक्टरों की मोटी फीस तथा मंहगे इलाज से गरीब व मध्यम वर्ग मर-मर कर जिन्द‌गी जीता है। मोदी सरकार गरीबों को आयुष्मान कार्ड देने व पांच लाख रुपये तक के फ्री इलाज की गारंटी देकर प्रशंसनीय काम कर रही है लेकिन निजी अस्पताल व डॉक्टर या तो इन गरीब कार्डधारकों को ठगते हैं, या टरकाते हैं।

जनसंख्या के अनुरूप देश में चिकित्सकों तथा नर्सों, कम्पाउंडरों की सख्त कमी है। अभी 12 दिसंबर को स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने राज्यसभा में बताया कि देश में 834 मरीजों पर एक डाक्टर उपलब्ध है और 476 मरीजों पर एक नर्स है। मोदी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के लिए सराहनीय कदम उठाये हैं। देश के प्रत्येक जिला मुख्यालय पर एक नया मेडिकल कॉलेज खोले जाने के लक्ष्य के अनुरूप 9 वर्षों में 329 नये मेडिकल कॉलेज खोले गए, आयुष्मान कार्ड व बहुत सस्ती दवाइयों के लिए जैनरिक द‌वाइ‌यों के स्टोर, कैंसर व रक्तचाप आदि औषधियों के मूल्यों में कमी आदि अच्छे कदम हैं।

लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही व लूट की मनोवृत्ति बद‌लने का इलाज तो किसी के पास नहीं है। पिछले दिनों सरधना (मेरठ) क्षेत्र के सपा विधायक ने निजी अस्पतालों की लूटमार के विरुद्ध आमरण अनशन किया था लेकिन प्रदेश सपा अध्यक्ष ने अपने विधायक की अनिश्चित कालीन भूख हड़‌ताल तुड़‌वा कर बुद्धिमता का परिचय दिया क्यूंकि पार्टी व विधायक की वाह‌वाही तो हो ही गई, निजी अस्पताल तो सुधरने से रहे।

सरकारी अस्पतालों की क्या हालत है, इसे हर मरीज़ जानता है। जो भाकियू अधिकारियों को बंधक बना कर‌ धूप में बैठा देती है, उसके नेता चन्द्रपाल फौजी जिला अस्पताल से भाग खड़े हुए थे, दो दशकों से अधिक समय से अनशन पर बैठे मास्टर विजय सिंह ने अस्पताल में भ्रष्टाचार का हल्ला मचाया, सोशल एकटीविस्ट और शान्ति सेना के अध्यक्ष मनेश गुप्ता एडवोकेट ने अस्पताल में भ्रष्टाचार पर हंगामा किया तो बात पुलिस में एफआईआर करने तक पहुंची। अस्पताल में दलाली पर सीएमएस को मीटिंग बुलानी पड़ी।

सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों व स्टाफ की लापरवाही का हालिया सबूत तब मिला जब बागपत के जिला अधिकारी जितेन्द्र प्रताप सिंह ने जिले के सरकारी अस्पताल का 10 दिसंबर को औचक निरीक्षण किया। जिला अधिकारी को सीएमओ डॉ. महावीर सिंह सहित 11 चिकित्सक व 37 अस्पताल कर्मी अनुपस्थित मिले। देश में चिकित्सा सेवाओं की यह वास्तविक तस्वीर है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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