समाचार है कि 30 मार्च को खतौली क्षेत्र के ग्राम मढ़करीमपुर में केन्द्रीय राज्यमंत्री और मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ. संजीव बालियान के काफिले पर कुछ लोगों ने लाठी-डंडों, पत्थरों से लैस होकर हमला बोल दिया। जब डॉ. बालियान के साथ चल रही गाड़ियों पर हमला हुआ तब उनके साथ भाजपा के जिला अध्यक्ष, पूर्व विधायक व अन्य कई वरिष्ठ नेता भी थे।
कुछ दिन पूर्व बागपत क्षेत्र में रालोद तथा भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार राजकुमार सांगवान के कार्यकताओं को दौड़ा-दौड़ा कर पीटने का वीडियो वायरल हुआ था। हमलावर 15 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई है।
लगता है कि कुछ तत्व रालोद-भाजपा गठबंधन से हताश और क्षुब्ध हैं। यह भी कहा गया कि जयन्त चौधरी को भाजपा के साथ हाथ मिलाने से पहले कुछ ख़ास लोगों से परामर्श करना चाहिये था। एक नेताजी ने तो यह घोषणा भी कर दी जयन्त तो भाजपा के साथ चले गये, अब चुनाव में चौधरी चरणसिंह व अजित सिंह की नुमाइंदगी मैं करूंगा।
ये वे लोग हैं जो 75 वर्ष पुरानी ठप्पावाद की संस्कृति को 21वीं सदी के युग में लौटाना चाहते हैं। कभी पग्गड़धारी गांव के गरीबों, मजदूरों और कमजोरों को लाठी का भय दिखा कर बैलट बॉक्स भर लेते थे। चुनाव अधिकारियों को कहा जाता था- हलवा खाओगे या खलवा। टी.एन.शेषन ने इस परम्परा को निपटा दिया।
बुलेट के जरिये बैलट लूटने वालों के पास हिंसा, मार-पिटाई और दहशत फैलाने का रास्ता बचा है। बिहार, प. बंगाल और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में यह हिटलरशाही अभी कुछ-कुछ बाकी है किन्तु नागरिकों – मतदाताओं में जागरूकता बढ़ रही है। लोग समझ चुके हैं कि किसी खास सम्प्रदाय और जाति विशेष की लाठी के बल पर लोकतंत्र को ठेला नहीं जा सकता। यही कारण है कि जातिवादी क्षत्रप हाशिये पर आते जा रहे हैं। जिस जाति को ये तत्व बदनाम करना चाहते हैं उसके युवा तरक्की के मार्ग पर चल पड़े हैं- कोई सेना में, कोई पुलिस में, कोई इंजीनियर, टेक्नीशियन, डॉक्टर यह तक कि इसरो व नासा तक पहुंच चुके हैं। चुनाव में बेहूदगी करके इनकी तरक्की को नहीं रोका जा सकता। टी.एन.शेषन ने जिस चुनाव सुधार की शुरुआत की थी। वह धीरे-धीरे और सही मार्ग पर बढ़ रही है। बवाल काटने वालों को अन्ततः हताश होना पड़ेगा।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’