पीजेंट के चेयरमैन अशोक बालियान ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखते हुए कहा है कि हिन्दुओं के मन्दिरों में शिक्षित पंडितों और पुजारियों की नियुक्ति होनी चाहिए, क्योंकि अभी हाल ही में न्यूज़ पेपरों में खबर छपी कि पंजाब की एक महिला से छेड़खानी के आरोप में हरिद्वार के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ चंडी देवी के महंत रोहित गिरी को लुधियाना पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वहीं अब महंत की पहली पत्नी के हंगामे के बाद इसका खुलासा हुआ कि पहली पत्नी के होते हुए महंत ने दूसरी शादी की है। इस घटना से हिन्दू समाज चिंतित है, क्योंकि पुजारी समाज के लिए एक नैतिक आदर्श होता है।
हिन्दू मन्दिरों में योग्य और चरित्रवान पुजारियों का होना ज़रूरी है। इससे मंदिर की पूजा-अर्चना और भक्तों के लिए एक अच्छा आध्यात्मिक माहौल बनाए रखने में मदद मिलती है। इन पुजारियों को धर्मशास्त्र और पूजा विधि का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें सदाचारी होना चाहिए।
हमने हिन्दुओं के कुछ मन्दिरों की व्यवस्था का अध्ययन किया है। हमने अपने अध्ययन में पाया है कि भारतीय संस्कृति में हिन्दू धर्म की शिक्षा के लिए मन्दिरों में योग्य पंडितों और पुजारियों की आवश्यकता है, तथा इसके लिए पुजारियों के वेतन की व्यवस्था भी ज़रूरी है। क्योंकि वर्तमान में अधिकतर मन्दिरों में जो लोग खुद को हिंदू पंडित या विशेषज्ञ घोषित करते हैं, यह देखना आवश्यक है कि क्या वे वास्तव में अनुष्ठान विशेषज्ञ, ज्योतिषी, उपदेशक, सलाहकार और मंदिरों के प्रशासक के रूप में भूमिका निभाने के योग्य हैं या नहीं, और क्या उनका चरित्र अच्छा है।
हिन्दू मन्दिरों में पंडितों और पुजारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे समुदाय को शिक्षित करें, उन्हें धर्म के संदर्भ में अभ्यास सिखाएँ और इसके साथ ही हिन्दू परंपरा के वाहक और संरक्षक के रूप में कार्य करें। पुजारियों से हिंदू रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और शास्त्रों का ज्ञान होने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन इसके लिए योग्य पंडितों और पुजारियों का होना आवश्यक है।
हिन्दुओं के मन्दिरों में शिक्षित पंडितों और पुजारियों की नियुक्ति के सम्बन्ध में नियम बनाने की आवश्यकता है। भारत में वर्तमान में पुजारी एकेडमी शिक्षा के अलावा अधिकतर पंडित और पुजारी अक्सर स्वयं शिक्षित होते हैं, जबकि पंडित और पुजारी के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। भारत में सभी राज्यों में पंडितों और पुजारियों को मान्यता देने के लिए एक क़ानूनी बोर्ड होना चाहिए, जहाँ इसके लिए शिक्षा पूरी करने के बाद पंजीकरण हो।
कुछ राज्यों में शासन द्वारा संधारित देवस्थानों के पुजारियों की नियुक्ति हेतु योग्यता तय की गई है। नियुक्ति की प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। पुजारियों के कर्तव्यों और दायित्वों के साथ ही पुजारियों की पदमुक्ति तथा पद रिक्त होने पर व्यवस्था के नियम भी बनाए गए हैं। यदि कोई मंदिर मठ की श्रेणी में आता है और उस मंदिर पर किसी सम्प्रदाय विशेष अथवा अखाड़ा विशेष के पुजारी होने की परंपरा है, तो गुरु-शिष्य परंपरा के आधार पर पुजारी की नियुक्ति प्राथमिकता से की जाएगी। किसी दरगाह, खानकाह या तकिया पर सज्जादानशीन/मुजाविर आदि की नियुक्ति में वंश परंपरा की प्रथा है, तो नियुक्ति के समय उसका ध्यान रखा जाएगा, लेकिन इन नियमों को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया गया है। इन नियमों में भी बदलाव की आवश्यकता है।
अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन