उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनपद मुज़फ़्फरनगर के धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल शुकतीर्थ में कहा है कि मध्यकाल में जब देश गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब संत रविदास के रूप में एक प्रकाश पुंज का उदय हुआ। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया और समाज को नई चेतना देने का कार्य किया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुकतीर्थ में कहा कि यहाँ संत रविदास जी की मूर्ति स्थापित की जाएगी। शुकतीर्थ में ही संत समनदास के नाम पर घाट का निर्माण होगा और सड़कों का चौड़ीकरण कराया जाएगा।
मुख्यमंत्री की यह घोषणा ऐतिहासिक है। यह हमें इस्लामिक हमलावरों के शासन में हिंदुओं के जबरन इस्लाम में धर्मांतरण की याद दिलाती है। उस समय संत रविदास ने जबरन धर्मांतरण का विरोध किया था।
जेम्स वाइज की पुस्तक Notes on the Races, Castes and Trades of Eastern Bengal by James Wise (1883) के पृष्ठ 2 के अनुसार, पूर्वी बंगाल में इस्लामिक शासन के दौरान शासक जलालुद्दीन (सन 1414 से 1430) ने हिंदुओं के धर्मांतरण के लिए केवल दो विकल्प – “क़ुरान या मौत” – रखे थे। इसके बाद काफ़ी लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
इसी पुस्तक के पृष्ठ 8 के अनुसार, भारत के अन्य हिस्सों में भी इस्लामिक शासकों ने वही किया जो पूर्वी बंगाल के शासक ने किया था। हिंदुओं के एक अन्य उत्पीड़क सिकंदर लोदी (1488-1516) ने मथुरा के पवित्र मंदिरों को नष्ट कर दिया था और हिंदुओं को सिर या दाढ़ी मुंडवाने, नियमित स्नान करने और चेचक की देवी “शीतला माता” की पूजा करने पर सख़्त प्रतिबंध लगा दिया था।
सिकंदर लोदी का समस्त जीवन लूट, बलात्कार, नरसंहार, हिंदुओं के सामूहिक इस्लामीकरण और हिंदू मंदिरों को मस्जिदों व मकबरों में रूपांतरित करने की एक लंबी कहानी है। हिंदू परंपराओं के पालन पर ‘कर’ वसूली और इस्लाम अपनाने वालों को छूट देने के पीछे एकमात्र उद्देश्य यही था कि हिंदू धर्मावलंबी तंग आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें।
सिकंदर लोदी के शासनकाल में संत रविदास ने उसके क्रूर अत्याचारों और आतंक के विरोध में मजबूती से आवाज़ उठाई थी। उन्होंने जबरन मतांतरण की चुनौती को स्वीकार करते हुए न केवल सनातनधर्मियों को अपने धर्म में अडिग रहने की प्रेरणा दी, बल्कि हजारों मतांतरित हिंदुओं की घर वापसी भी करवाई। इसलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शुकतीर्थ में संत रविदास जी की मूर्ति लगाने की घोषणा ऐतिहासिक मानी जाएगी।
भारत में कुछ ताक़तें दलितों को हिंदुओं से अलग राह पर ले जाने का प्रयास कर रही हैं। आज़ादी से पहले भी दलितों को हिंदुओं से अलग कर इस्लाम की ओर आकर्षित करने के कई प्रयास हुए थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इन सभी प्रयासों को खारिज किया था। हम उम्मीद करते हैं कि शुकतीर्थ में समनदास आश्रम इन प्रयासों को खारिज करने का कार्य करेगा।
– अशोक बालियान, चेयरमैन पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन