नकली स्टाम्प पेपर्स के धंधे बाज़ !

भारत ऐसा देश है जहां इंसान को छोड़ हर चीज़ की नकल तैयार हो जाती है। नकली दवाइ‌यां, नकली घी-तेल, नकली चावल-दाल और मसालों से लेकर न जाने क्या-क्या इस देश में बनता और बिकता है। कई इमारतों की छतें इसलिए घड़‌घड़ा कर गिर पड़ी कि निर्माण कार्य में नकली सीमेन्ट इस्तेमाल हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व लखनऊ में ऐसा गिरोह पकड़ा गया था जो अस्पतालों व मरीजों को नकली खून सप्लाई करता था।

खबर है कि गोरखपुर पुलिस ने 84 वर्षीय वृद्ध मोहम्मद कमरूद्दीन नामक व्यक्ति को पकड़ा है जो कई दशकों से जाली या नकली स्टाम्प पेपर छापता और सप्लाई करता था। पुलिस सूत्रों के अनुसार कमरूद्दीन के कब्जे से एक करोड़ रुपये से अधिक के नकली स्टाम्प पेपर, छपाई व पेपर कटिंग मशीन, लैपटॉप, कागज व स्याहियाँ आदि बरामद किये हैं। पता चला है कि कमरूद्दीन व उसका गैंग देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज आदि स्थानों में नकली स्टाम्प पेपर बेचता था। उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में भी यह गैंग नकली स्टाम्प पेपर सप्लाई करता था। पुलिस को यह भी ज्ञात हुआ कि कमरूद्दीन को सन् 1986 में इसी धंधे में बिहार पुलिस ने जेल भिजवाया था।

इसका यह मतलब निकला कि कमरूद्दीन और उसका गिरोह कई दशकों से नकली स्टाम्पों के जरिये सरकारों के राजस्व को अरबों रुपये का चूना लगा चुका है। ऐसे लोगों का पकड़ा जाना, जेल जाना और फिर छुट जाना सिद्ध करता है कि कानून में कुछ खामियां हैं। यह सिर्फ धोखाधड़ी ही नहीं, राष्ट्रद्रोह का अपराध है।

कुछ वर्षों पूर्व महाराष्ट्र में भी नकली स्टाम्प पेपर छापने व सप्लाई का अरबों रुपये का काण्ड पकड़ा गया था जिसमें सरकार के नासिक रोड प्रेस के कर्मचारी भी शामिल थे। उन अपराधियों का क्या हुआ, अब किसी को पता नहीं। यदि ऐसे अपराधि‌यों को मृत्युदंड या आजीवन कारावास और अर्जित संपति जब्त करने का दण्ड मिलने लगे तो फिर ऐसा दुस्साहस कोई भी न करे।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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