एमबीबीएस कालेजों में महंगी फीस के चलते यूक्रेन जाने के लिए मजबूर होते हैं छात्र

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों में ज्यादातर मेडिकल के छात्र हैं, इसलिए देश में मेडिकल शिक्षा व एमबीबीएस की उपलब्ध सीटों पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। इसी क्रम में दिल्ली एनसीआर में मौजूद मेडिकल कालेजों पर यदि नजर दौड़ाएं तो स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं दिखती। खासतौर दिल्ली की तुलना में एनसीआर के शहरों की स्थिति ज्यादा खराब है। एनसीआर के शहरों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए छात्र महंगे निजी कालेजों पर ही निर्भर हैं। इसका कारण यह है कि एनसीआर के शहरों में सरकारी मेडिकल कालेज खोलने पर खास ध्यान नहीं दिया गया। इस वजह से एनसीआर के शहरों के मेडिकल कालेजों में उपलब्ध एमबीबीएस की 80 प्रतिशत सीटें निजी मेडिकल कालेजों में है, जहां सालाना 12 से 24 लाख शुल्क है। इसके अतिरिक्त भी कई अन्य तरह के शुल्क छात्रों को भरने होते हैं, इसलिए मध्यम वर्ग के छात्रों की पहुंच से भी ये कालेज दूर हैं। हालांकि, इस मामले में दिल्ली की स्थिति थोड़ी बेहतर है।

दिल्ली में एमबीबीएस कोर्स संचालित करने वाले 10 मेडिकल कालेजों में से नौ सरकारी क्षेत्र के कालेज हैं, जहां शुल्क ज्यादा नहीं है। वर्ष 2011 तक दिल्ली में महज पांच मेडिकल कालेज थे। तब उनमें एमबीबीएस की 827 सीटें थीं। इसके बाद तीन मेडिकल कालेज शुरू होने से वर्ष 2014 तक दिल्ली में एमबीबीएस की सीटें बढ़कर 1077 हो गईं।

सात साल में खुले हैं दो मेडिकल कालेज

वर्ष 2014 के बाद अब दिल्ली में एमबीबीएस की 370 सीटें बढ़ी हैं। इस दौरान सिर्फ दो नए मेडिकल कालेज नए खुले हैं। इसलिए मौजूदा समय में दिल्ली के 10 मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस की कुल 1447 सीटें हैं। स्थिति यह है कि आरएमएल अस्पताल के मेडिकल कालेज में तीन साल से एमबीबीएस की पढ़ाई हो रही है, लेकिन अब तक उसका भवन बनकर तैयार नहीं हो पाया। इसी तरह डीडीयू अस्पताल में भी मेडिकल कालेज शुरू करने की योजना थी, जो अब तक पूरी नहीं हुई।

एनसीआर के शहरों में सात में से पांच मेडिकल कालेज हैं निजी

दिल्ली के आसपास मौजूद एनसीआर के प्रमुख शहरों में सात मेडिकल कालेज हैं, जिसमें से पांच निजी क्षेत्र हैं। इसलिए इन शहरों के एमबीबीएस की कुल एक हजार सीटों में से 800 सीटें निजी मेडिकल कालेज में हैं। गाजियाबाद के एक कालेज में एक साल का शुल्क करीब 22 लाख, पांचवें साल का शुल्क करीब 12 लाख है। इस लिहाजा से साढ़े चार साल के एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई में एक करोड़ से अधिक रकम खर्च करना पड़ता है।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डा. अजय लेखी ने कहा कि यहां के निजी मेडिकल कालेजों में शुल्क अधिक होने के कारण छात्र यूक्रेन सहित कई अन्य देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं। यूक्रेन में छात्रों को प्रवेश परीक्षा भी नहीं देना पड़ता।

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