17 सितंबर। सृष्टि के रचयिता, ब्रह्मांड के प्रथम इंजीनियर, ज्ञान-विज्ञान एवं समस्त सृजन कलाओं के मूलस्रोत भगवान विश्वकर्मा की जयंती पूरे देश में श्रद्धापूर्वक मनाई गई। इस बार मीडिया में विश्वकर्मा जयन्ती की चर्चा इस लिए अधिक रही क्योंकि आज ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के द्वारका में नवनिर्मित यशोभूमि का लोकार्पण भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ 13000 करोड़ रुपये की विश्वकर्मा योजना के साथ किया। देशभर से आये विश्वकर्मा बंधुओं से सीधा संपर्क किया। मीडिया ने इस योजना को 2024 के चुनाव से जोड़ दिया।
विश्वकर्मा योजना क्या है, क्या यह मोदी का चुनावी एजेंडा है, इस पचड़े में पड़ने के बजाय मीडिया को सृष्टि के सूत्रधार भगवान् विश्वकर्मा के बारे में और उनके विराट परिवार के सदस्यों (सभी प्रकार के शिल्पकारों की स्थिति पर चर्चा करनी चाहिए थी)। ब्रह्मा के पुत्र ने अपने पुत्रों- मनु-मय, त्वष्टा, शिल्पी, देवज्ञ को संसार की समस्त शिल्पविद्याओं का ज्ञान देकर इन्द्रपुरी से लेकर द्वारिकापुरी तक की रचना की। थल मार्ग, वायु मार्ग, जल मार्ग के वाहन बनाये, कृष्ण का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल, पुष्पक विमान बनाया, नयी पीढ़ी को इन सब का ज्ञान देने की आवश्यकता है। ऋग्वेद में भगवान् विश्वकर्मा का उल्लेख है। ‘देवौ सौ सूत्रधार: जगदखिल हित: ध्यायते सर्वसत्वै’- विश्वकर्मा सम्पूर्ण जगत की रचना के सूत्रधार है। आर्ष ग्रंथों में भगवान् विश्वकर्मा की वन्दना का विधान है- ॐ अनन्ताय विद्महे, विश्वरूपाय धीमहि। तन्नो विश्वकर्मा प्रचोदयात।।
ऋषि दयानन्द की शिक्षाओं व आदर्शों के प्रचार प्रसार में जीवन समर्पित करने वाले आचार्य गुरुदत्त आर्य ने कुछ वर्ष पूर्व भगवान् विश्वकर्मा संबंधी जानकारियों का एक पत्रक छपवाया था। इस प्रकार के पत्रक समस्त भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराये जाने चाहियें और वितरित होने चाहियें किन्तु आपा-धापी और नेताओं के चरण चुम्बन में लगे लोग यह नहीं करेंगे। आचार्य गुरुदत्त जी जैसा कोई नि:स्वार्थी सत् पुरुष ही ऐसा कर सकता है।
जहां तक नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के शिल्पकारों को विश्वकर्मा योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता व दस्तकारों के उत्पादनों की बिक्री में सहायता देने के प्रयासों की बात है, इसमें हमें राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि दृष्टि गोचर नहीं होती। योगी आदित्यनाथ तो अबतक विश्वकर्मा शिल्पकारों को 50000 करोड़ रुपये की धनराशि दिला चुके हैं।
भगवान् विश्वकर्मा की संतानों के बीच सम्प्रदाय जाति-धर्म या गोत्रों का कोई वर्ग-भेद नहीं होना चाहिए। सन्त कबीर- “झीनी झीनी बीनी चदरिया” गाते-गाते दुनिया को एक जाति का सन्देश दे गये। उनकी काशी में मोदी ने मुस्लिम बुनकरों का शोषण और दुर्दशा को जाना तो हथकरघा चालकों के लिए करोड़ों रुपये की लागत से बुनकर कलस्टर बनवा दिया।
प. गोविंद बल्लभ पन्त के मंत्रिमंडल में मुख्य संसदीय सचिव और राजस्व मंत्री बने चौधरी चरण सिंह ने उत्तरप्रदेश में चकबंदी योजना चलाई तो प्रत्येक गांव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, चर्मकार, बुनकर आदि ग्रामीण शिल्पकारों के लिए सामूहिक कार्यशाला (वर्कशॉप) तथा पशुओं के चरने के लिए गोचर भूमि का प्रावधान किया, जो बचत की भूमि पर बनने थे। ग्रामीण परिवेश से निकले चौ. चरण सिंह को जीवन भर राजनीतिक विडम्बनाएं झेलनी पड़ी और गांवों में दस्तकारों की सामूहिक वर्कशॉप बनाने की योजना उनके जीवन काल में ही फ्लॉप हो गई। कार्यशाला व गोचर जमीन पर पग्गड़धारी लंढेतों का कब्जा आज भी बना है। किसी ने भी यहां तक कि चौधरी साहब के नाम की राजनीति भुनाने वालों ने उनकी विश्वकर्मा प्रोत्साहन योजना को असल में लाने का प्रयास नहीं किया।
भगवान् विश्वकर्मा निर्माण एवं संरचना के घोतक हैं। ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रपति भवन में बैठ कर भी विश्वकर्मा भगवान् के मिशन को आगे बढ़ाया। स्वामी कल्याणदेव जी ने निरक्षर होते हुए भी सैंकड़ों विद्यालय (खोल दिए)। उन्हें तो मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बनना था। यह भगवान् विश्वकर्मा के प्रति विश्वास एवं श्रद्धा का प्रताप था।
भगवान् विश्वकर्मा के अनेक अनुयायियों की छवि मेरी आंखों के सामने तैर जाती है जिन्होंने अपनी कार्यक्षमता, कर्मठता और रचनात्मकता के बल पर समाज के निर्माण व उत्थान में कार्य किया। एक समय था जब ग्रामीण एवं किसान रथों व बैल गाड़ियों का उपयोग करते थे। पहली बार विश्वकर्मा बंधुवों ने झोटा (भैंसा) चालित बुग्गी का आविष्कार किया। गणपतराय भगीरथ लाल फर्म ने झोटा बुग्गी का आविष्कार कर करोड़ों किसानों को एक सौगात दी। इन्हीं ने ही शामली में धीमानपुरा बसाया। किसान चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम झोटा बुग्गी का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं।
कृषि क्षेत्र में पंजाब के विश्वकर्मा शिल्पकारों का महत्वपूर्ण योगदान है। पहले गंडासे से कुट्टी कटती थी। फिल्लौर वालों ने चारा काटने की मशीन बनाई, नाहन वालों ने कोल्हू बनाये। लुधियाना वालों ने थ्रैशर व रिपर बनाये। खतौली में ट्रैक्टर पुली का धंधा पनपा। यह सब दस्तकारी का चमत्कार है। पुरातन भारत के ढाका की मलमल का दुनिया में डंका था।
हमें भलीभांति याद है कि मुज़फ्फरनगर व मीरापुर के कंबलों की देश भर में धूम थी। अलीगढ़ के पीतल के बर्तन व तालों का दूर-दूर तक नाम था। सहारनपुर की लकड़ी पर नक्काशी का काम खूब प्रसिद्ध था। बिजनौर के उस्ता बाल तराश नाई एवं बेकरी कारीगर देश भर में फैले हुए हैं। लॉर्ड डल हौजी द्वारा सन् 1847 में स्थापित रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में ब्रिटिश काल में ही बिजनौर के कारीगर ने बेकरी स्थापित की थी। जिसकी ब्रेड (डबल रोटी), मक्खन के बिस्कुट, पेस्ट्री, पैटीज व क्रीमरोल की धमक दिल्ली तक थी। दिल्ली में अशोका होटल में बेकरी स्थापित होने से पहले तक जवाहर लाल नेहरू के लिए बेकरी के सामान रुड़की से जाते थे।
इस लेख में लकड़ी से बनी एक चम्मच का चित्र प्रकाशित किया जा रहा है। 5 ग्राम की इस चम्मच को मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के वसायच ग्राम के श्याम सुन्दर मे 80 वर्ष पूर्व बनाया था। श्याम सुन्दर पेशे से बढ़ई थे। इनके दोनों लड़कों -मामचन्द और भरतराम रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गये। पहले ब्लॉक मेकिंग में काम आने वाला प्रोसेसिंग कैमरा लंदन की कंपनी हंटर पैनरोज बनाती थी। दोनों भाइयों ने घोंडा मौजपुर में अपना वर्कशॉप स्थापित किया। उनके बनाये हॉरिजेंटल कैमरा दिल्ली, बंबई, मद्रास, कलकत्ता तक में लगे थे।
सनातन भारत में हस्तशिल्प व कारीगरों को प्रोत्सान की कहानियाँ है। शाहजहाँ द्वारा ताजमहल के निर्माण के बाद शिल्पकरों के हाथ कटवाने जैसी पैशाचिक घटना पुरातन भारत में नहीं मिलती।
मुझे याद है कि हमारे प्रेस में छपाई मशीन चलाने वाले उस्ताद ख़लील दशहरा, दीपावली तथा विश्वकर्मा जयंती पर मशीनों की पूजा कराते थे। उद्यमी व कैबिनेट मंत्री विद्याभूषण अपनी रैनबो फैक्ट्री में विश्वकर्मा जयंती पर पूजा का बड़ा कार्यक्रम कराते थे और कारीगरों, मिस्त्रियों को सम्मानित करते थे। मैं कई बार इस पूजा में सम्मिलित हुआ।
सनातन संस्कृति बताती है कि भगवान् विश्वकर्मा निर्माण व समृद्धि के प्रतीक है। भारत में विराट विश्वकर्मा परिवार है। इसे हिन्दू-मुस्लिम व जातियों में बांटने का कुत्सित प्रयास असफल किया जाना चाहिए।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’