गांव की माटी से निकला आदर्श परिवार जो आज भी एक मिसाल है

हम मुज़फ्फरनगर जिले के चरथावल विकास खंड के एक गांव की बात कर रहे हैं जिसकी माटी ने देश को अनेक अनमोल हीरे दिये हैं। इस गांव से प्रशासन, न्यायपालिका, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में ऊंचा स्थान हासिल करने वाली प्रतिभायें निकली हैं। स्वाधीनता संग्राम या आज़ादी प्राप्ति के संघर्ष में योगदान करने वाला यह मुज़फ्फरनगर जिले का अकेला गाँव था जहां के लोगों ने जंग-ए-आज़ादी में सबसे अधिक संख्या में भाग लिया।

हम चरथावल कस्बे से 6 किलोमीटर दूर ग्राम दूधली का जिक्र कर रहे हैं। इस ग्राम ने एक से एक प्रतिभावान लाल दिये हैं। ब्रिटिशकाल में भारतीय सिविल सर्विस (आईसीएस) अधिकारी बी.बी. सिंह दूधली के ही थे। सेशन जज वीर सिंह, उनके पुत्र जिला जज के पद से रिटायर हुए कनिष्क कुमार, डी.जी. सी. राजबहादुर सिंह भी दूधली के सपूत है। इंजीनियर रविदत्त जो उत्तर प्रदेश के मुख्य अभियंता के रूप में प्रोन्नत हुए, दूधली के ग्रामीण परिवार में उत्पन्न हुए थे। दूधली में और भी अनेक ऐसी शख्सियतें हुईं जिन्होंने समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त किया और गांव का नाम ऊंचा किया।

अभी अभी का समाचार है कि दूधली के राजकुमार सिंह (सेवानिवृत्त पुलिस उप निरीक्षक) की पुत्री दिव्या सिंह ने फ़्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित कार्डियोलॉजी की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में अपना पेपर पढ़ा। दिव्या यूनाइटेड किंग्डम (इंग्लैंड) के नार्थ वेल्स कार्डिक सेंटर से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं।
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धली का ऐसा ही एक परिवार, जो लगभग 75 वर्षों से मुज़फ्फरनगर में बसा है और जिसने आज भी आदर्श परिवार की परम्परायें अपनाई हुई हैं, हम उस परिवार की संघर्ष की कहानी व परिचय संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

ब्रिटिशकाल में ग्राम दूधली में एक निर्धन वैश्य परिवार निवास करता था। लाला काशीराम जी के पास कोई जमीन-जायदाद न थी। मुश्किल से गुजारा होता था। माता कलावती चर्खा कातने से होने वाली मामूली आय से बच्चों की परवरिश करती थीं। लक्ष्मीचन्द उनके बड़े लड़के थे, आत्माराम उनसे छोटे। गरीबी के बावजूद माता-पिता बच्चों की पढ़ाई पर ज़ोर देते थे।

लक्ष्मीचन्द और उनसे छोटे आत्माराम ने देहरादून में कुछ कामकाज करने के साथ-साथ पढ़ाई भी शुरू की। इस बीच दोनों भाई-लक्ष्मीचन्द और आत्माराम गाँधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लेने लगे। सन् 1942 के महात्मा गांधी के असह‌योग आन्दोलन में सम्मिलित होने पर दोनों भाई गिरफ्तार हो गए। लक्ष्मीचन्द व आत्माराम को दो-दो वर्ष कारावास की सजा हुई। दोनों दो वर्षों तक बरेली जेल में बन्द रहे।

सारा परिवार गरीबी, अभावों से त्रसित था, किन्तु देशभक्ति की राह पर अड़िग रहा। 1949 में परिवार गांव छोड़ कर मुजफ्फरनगर आ गया। साद‌गी-सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ा।

1947 में देश आज़ाद हुआ। समय ने पलटा खाया। लक्ष्मीचन्द व आत्माराम पॉलिटिकल सफ़रर थे। लक्ष्मीचन्द को दो रूटों के बस के परमिट मिले। आत्माराम की नायब तहसीलदार पद पर नियुक्ति हो गई जो एसडीएम के पद से सेवा निवृत हुए। दोनों भाईयों ने अन्य भाई बहनों की शिक्षा-दीक्षा व परवरिश में जीवन खपा दिया। इनके भाई जयप्रकाश आजाद एडवोकेट, जो जिला बार संघ मुजफ्फरनगर‌ के अध्यक्ष रह चुके हैं, ने बताया कि दोनों बड़े भाई देवता समान थे। उनकी निजी आवश्यकताएं व इच्छाएं शून्य थीं। भाई-बहनों को उच्च शिक्षा दिलाने और शादी विवाहों में पूरी शक्ति व साधन लगा दिये। वैश्य समाज में जागृति उत्पन्न करने को बिना दहेज व सिर्फ 15 बारातियों के साथ विवाह करने की परम्परा डाली जो 50 वर्षों से जारी है।

मुज़फ्फरनगर प्रेमपुरी में निजी आवास‌ बनाने के पश्चात कई भाइयों-जयप्रकाश आजाद, कैलाशचन्द व मनेश कुमार को वकालत परीक्षा पास कराई। बहनों व पुत्र-पुत्रियों को भी उच्चा शिक्षा दिलाई। साथ ही एक छत, एक चूल्हा यानी संयुक्त परिवार की परम्परा कायम रखीं। जयप्रकाश आजाद पांच दशकों तक वकालत करने के बाद अब रिटायरमेंट लें चुके हैं। दूसरे भाई कैलाशचन्द जानसठ व खतौली बार संघ के अध्यक्ष रहे, वे भी अब वकालत के कार्य से निवृत हो चुके हैं। सबसे छोटे भाई मनेश कुमार भी एलएलबी किये हुए है किन्तु उन्होंने समाजसेवा का रास्ता चुना। परिवार में 5 लोगों ने एलएलबी की हुई है। लक्ष्मीचन्द के एक पुत्र प्रवीण गुप्ता जज के पद से सेवा निवृत हुए। दुर्भाग्य से दूसरे पुत्र राजीव गुप्ता की, जो पीसीएस थे, असमय मृत्यु हो गई। जयप्रकाश आज़ाद के पुत्र डॉ.मनोज गुप्ता ऋषिकेश एम्स में डायरेक्टर हैं। उनकी पत्नी डॉ. रूबी भी एम्स ऋषिकेश में कार्यरत हैं। दूसरे पुत्र अंशुमान भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं। बहुएं भी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। डॉ. अनु आर. बी. कॉलेज आगरा में अर्थशास्त्र संकाय की विभागाध्यक्ष हैं। परिवार के सदस्य आलोक कुमार व प्रद्युमन कुमार मुजफ्फरनगर कचहरी में प्रैक्टिस करते हैं।

जयप्रकाश आज़ाद ने बताया कि परिवार के सदस्य जहां अपने-अपने कार्यों में संलग्न हैं, वहीं छोटे भाई मनेश गुप्ता ने समाजसेवा का मार्ग चुना । श्री आजाद ने अपना करियर वकालत से आरंभ तो किया किन्तु गाँधीवादी विचारधारा के अनु‌यायी होने के नाते वे आचार्य विनोबा भावे के सर्वोद‌य आंदोलन से जुड़े रहे। मुजफ्फरनगर जिला सर्वोदय के अध्यक्ष रहे। वीसी शीतल प्रसाद जी, बहन कृष्णा कुमारी, लक्ष्मीचन्द, चारुशीला विधायक जी आदि गांधीवादी लोगों के साथ काम किया।

मनेश गुप्ता ने करियर कांग्रेस की राजनीति से आरंभ किया। 1971 में बाबू नारायण सिंह और हेमवती नन्दन बहुगुणा के नज़दीक आये और जिला कांग्रेस के सदस्य बने। 1973 से 1976 तक जिला युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। राजनीति से मोह भंग होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में दलितों, पिछड़ों की दयनीय स्थिति और उपेक्षा को देख ग्रामों में नव जागरण तथा कामकाजी महिलाओं के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से गांव-गांव में सभायें करना आरंभ किया। ग्रामों की दलित, पिछड़ी महिलाओं की शांति सेना बनाई और धरना-प्रदर्शन के गांधीवादी तरीकों से सामाजिक विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने में तत्पर रहे। मनेश गुप्ता ने मुजफ्फरनगर जैसे छोटे शहर में अनेक सेमीनार आयोजित किये और देश की दिग्गज हस्तियों को मुजफ्फरनगर में लाये।

पर्यावरणविद् और चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा, डॉ. महीप सिंह, डॉ. योगेंद्र नारायण, लोकसभा अध्यक्ष रवि राय, पत्रकार भारत डोगरा, फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी, पत्रकार कुलदीप नय्यर, सोशल एक्टीविस्ट अरु‌णा राय, कुमार प्रशान्त अध्यक्ष गांधी शांति प्रतिष्ठान, योगेन्द्र यादव, डॉ. वन्दना शिवा, पर्यावरणविद् एम. सी. मेहता, गांधीवादी निर्मला देशपांडे, समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन, सन्दीप पांडेय (मैग्सेसे पुरस्कार विजेता) आदि विशिष्टजन ने मनेश गुप्ता द्वारा आयोजित सेमीनारों में प्रतिभाग किया। मनेश गुप्ता ने 1991 में मुजफ्फरनगर में शानदार इंडो-पाक मुशायरा आयोजित कर एक इतिहास रचा।

गाँव की गरीबी, अंधकार, निरक्षरता के वातावरण से निकल कर प्रगति के रास्ते पर बढ़‌ने वाले एक परिवार की यह सत्यकथा है।

गोविन्द वर्मा
9368217605

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