यादों के झरोखे


ज्ञानी जी के साथ बिताये वे अविस्मरणीय पल !

5 मई को भारत के 8वें राष्ट्र‌पति ज्ञानी जैल सिंह की जन्म-जयन्ती पर मैंने उन्हें नमन् किया था किन्तु उनसे जुड़ा एक निजी अनुभव साझा नहीं कर पाया था। ज्ञानी जी को देखने-सुनने का अवसर हमें कई बार मिला किन्तु उनसे इतनी अंतरंग भेंट होगी, जीवन में इसकी कल्पना कभी नहीं की थी।

हमारी ननिहाल (ग्राम निरगाजनी) की ओर से एक रिश्तेदार (जेएस पवार) उद्योग विभाग, नोएडा में काम करते थे। अचानक उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और गुजरात के भरूच में एक रोलिंग मिल लगा लिया। तब गुजरात में कांग्रेस नेता अहमद पटेल का सिक्का चलता था। उनकी इजाज़त के बिना गुजरात में पत्ता भी नहीं हिलता था। पवार साहब इंडस्ट्रियल एरिया भरूच में प्लांट लगाना चाहते थे लेकिन इसके लिए अहमद पटेल की इजाज़त जरूरी थी। प्लांट तो लगा किन्तु कारखाने में पटेल के साले को बिना पैसा दिये स्लीपर पार्टनर बनाना पड़ा।

जिस दिन फैक्ट्री में प्रोडक्शन का ट्रायल हुआ, उसी रात कारखाने में 5-6 बंदूकधारी लोगों ने जेएस पवार से कहा- ‘जान बचानी है तो फौरन भाग जाओ।’ जेएस पवार फैक्ट्री को अहमद पटेल के लोगों के हवाले कर रात को ही भरूच से निकल भागे। नौकरी से इस्तीफा दे चुके थे, फैक्ट्री में लगे लाखों रुपये डूब गए।

मेरठ जनपद के ग्राम सिरसली निवासी डॉ. परमानंद पांचाल ज्ञानी जैलसिंह के ओएसडी थे। ज्ञानी जी के अति निकट, उनके निजी आद‌मी! पांचाल जी के सगे बड़े भाई जयनारायण ‘प्रकाश’ (पटवारी जी) ‘देहात प्रेस’ के प्रबंधक पद पर कार्य कर चुके थे। मैंने उनसे जेएस पवार के साथ हुए हादसे के बारे में बात की और पूछा कि क्या डॉ.परमानंद जी कुछ मदद कर सकते हैं? उन्होंने डॉक्टर साहब से बात की तो पांचाल साहब ने कहा- ‘गोविन्द को मेरे पास भेजो।’ वे पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा और मुझसे पहले से ही परिचत थे।

दिल्ली पहुंचा तो डॉ. पांचाल साहब अपनी फिएट कार में बैठा कर राष्ट्र‌पति भवन ले गए। मुख्यद्वार से लेकर भीतर तक दरवाजे फटाफट खुलते चले गए और पांचाल साहब को सैल्यूट पर सैल्यूट लगते गए।

मेरे लिए यह अविश्वनीय और विस्मयकारी रोमांचक अनुभव था। और डॉक्टर साहब ने मुझे ज्ञानी जी के निजीकक्ष में लाकर खड़ा कर दिया।

राष्ट्रपति जी तब स्नानगृह में गये हुए थे। दो मिनट बाद बाथरूम से निकले, कच्छा पहिने हुए। एक हाथ में तौलिया, दूसरे में केश बहाने की छोटी सी कंघी। केश पोछते-पोछते बाहर निकले और ट्रेसिंग टेबल के पास पड़े स्टूल पर आ कर बैठ गए। तोलिये से केश सुखा कर कंघी करते हुए मेरी ओर देखा। पांचाल साहब ने कहा- ‘छोटा भाई है।’ मेरी ओर देख के बोले- ‘ऐनू चाय-शाय पिलाओ जी।’ मैंने कहा- मैं चाय नहीं पीता’ तो हंस के बोले- ‘तो दूध पियो जी!’ तत्काल एक बड़े ग्लास में दूध, फल व अन्य खाद्य पदार्थों की ट्रे आ गई। दूध आधा लिटर से कम न होगा, धीरे-धीरे मुश्किल से पिया गया।

कच्छा- बनियान पहिने आकर बैड पर बैठ गये। मैं और पांचाल साहब कुर्सी पर बैठे थे। एक सेब उठा कर मुझे दिया। पांचाल साहब ने सिर्फ चाय पी। उन्होंने ज्ञानी जी को भरूच वाली घटना का जिक्र किया। ज्ञानी जी बोले- ‘अमर सिंह नू फोन लगा।’ अमरसिंह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। फौरन हॉट लाइन पर आ गए। ज्ञानी जी बोले- ‘अमरसिंह, पहले बन्दे नू गुजरात बुलान्दे हो, फेर उन्हानू लुटवादें हो। त्वाड़े पासे हुन कोई ना आवेगा।’

अमरसिंह क्या बोले, सुनाई नहीं दिया। ज्ञानी जी ने भरूच इंडस्ट्रियल एस्टेट और जेएस पवार का नाम लिया। पूछा- कब तक पैसा वापस आएगा और रिसीवर रख दिया। मुझे सारी बातें सपने जैसी लगी। आज भी सपना ही लगती हैं।

जेएस पवार हमारे पास ही मुज़फ्फरनगर में ठहरे हुए थे। पांचवें दिन एक व्यक्ति आया और उनका नाम पूछ कर फैक्ट्री की पूरी कीमत चुका कर चला गया।

राष्ट्र‌‌पति के निजी कमरे में उनसे मुलाकात व दूध पीने की बात तो कल्पना से परे की बात है। मुझ जैसा सामान्य व्यक्ति तो राष्ट्रपति भवन के गेट तक पर नहीं ख‌ड़ा हो सकता। यह तो प्रभु का चमत्कार ही था। हाँ, इस भेंट से इतना अहसास जरूर हुआ कि राष्ट्र‌‌पति पद पर बैठे ज्ञानी जी आम आदमी की पीड़ा को बखूबी समझते थे और तत्काल पीड़ा निवारण करते थे।

गोविन्द वर्मा

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