भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ के महासचिव और रक्षा मंत्रालय की जेसीएम-2 लेवल काउंसिल के सदस्य मुकेश सिंह ने पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाली की मांग को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने पीएम को कई सुझाव दिए हैं। एनपीएस यानी नई पेंशन योजना को खत्म करने की बात कही गई है। साथ ही कर्मचारी नेता ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार अगर एनपीएस को खत्म नहीं करना चाहती, तो उसे कर्मियों को शर्तिया न्यूनतम पेंशन जो कि अंतिम वेतन का आधा हो, प्रदान करनी होगी। इतना ही नहीं, इसे महंगाई राहत भत्ते से जोड़ना होगा। अगर केंद्र सरकार जल्द ही ये मांग पूरा नहीं करती है, तो नवंबर में दिल्ली, केंद्रीय कर्मियों की दहाड़ सुनेगी। देशभर के लाखों केंद्रीय कर्मी, राष्ट्रीय राजधानी में हल्लाबोल करेंगे।
आदर्श नियोक्ता एवं संरक्षक की भूमिका निभाए सरकार
बीपीएमएस के महासचिव मुकेश कुमार ने गत सप्ताह ही पीएम को यह पत्र लिखा था। इनमें उन्होंने कहा है कि जिन केंद्रीय कर्मियों को एनपीएस में शामिल किया गया है, वे नाराज हैं। कर्मियों ने सरकार से हमेशा यह अपेक्षा की है कि वह अपने कर्मचारियों के लिए आदर्श नियोक्ता एवं संरक्षक की भूमिका निभाए। ये कर्मचारी देश की प्रगति में लगातार अपना योगदान दे रहे हैं। कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना, केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। प्रत्येक कर्मचारी चाहे वह किसी भी निजी या सरकारी संस्थान से संबंधित हो, अपने कौशल, शक्ति और ऊर्जा से नियोक्ता के लिए सेवानिवृत्ति तक खुद को समर्पित करता है। सेवानिवृत्ति के बाद वह कर्मचारी, उतना पारिश्रमिक पाने में असमर्थ हो जाता है, लेकिन उसकी आवश्यकता समाप्त नहीं होती है। उसे कई तरह की जिम्मेदारियां वहन करनी पड़ती हैं।
कर्मचारी के सामने आने वाली कठिनाइयों को कम करने की जिम्मेदारी नियोक्ता पर होती है। पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा को केवल बाजार से संबंधित कारकों के द्वारा नहीं मापा जा सकता है। केंद्र सरकार के विभिन्न क्षेत्रों में यह भार सरकार द्वारा ही वहन किया जाता था। इन सबके चलते ही सीसीएस (पेंशन) नियम-1972 को संकलित किया गया था। बाद में सरकार ने इसे अंशदायी भविष्य निधि से पेंशन योजना में परिवर्तन के लिए कर्मचारी पेंशन योजना-1995 की शुरुआत की। अब बाजार से जुड़े कारकों ने केंद्र सरकार को एक नियोक्ता के रूप में सामाजिक सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी वहन करने से विचलित करने के लिए मजबूर कर दिया है। सरकार इस दबाव के आगे झुक गई और पहली जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में आने वाले कर्मियों को एनपीएस में शामिल कर दिया गया।
एनपीएस में कई तरह की दिक्कतें
नई पेंशन योजना के अनुसार, कर्मचारियों से मूल वेतन + डीए का 10 फीसदी अनिवार्य कटौती के रूप में वसूल किया जा रहा है। सरकार भी कर्मचारियों के मूल वेतन + डीए का 14 फीसदी योगदान दे रही है। एक सरकारी कर्मचारी 60 वर्ष की आयु में सेवा से बाहर निकलता है। उसके लिए पेंशन धन का 40 फीसदी निवेश करना अनिवार्य होगा, जिससे वह कर्मचारी, अपने आश्रित माता-पिता/पति या पत्नी के जीवनकाल के लिए पेंशन प्रदान करेगा। मौजूदा एनपीएस में कई तरह के अभाव हैं। जैसे इस नई प्रणाली में न्यूनतम गारंटीकृत पेंशन नहीं है। पेंशन पर महंगाई भत्ते के अभाव में मूल्य वृद्धि से कोई बचाव नहीं है। 80 वर्ष, 85 वर्ष, 90 वर्ष, 95 वर्ष या 100 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर अतिरिक्त पेंशन का कोई लाभ नहीं। लापता कर्मचारियों के मामले में कोई सुरक्षा नहीं होती। अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेंशन का अभाव है। मुआवजा पेंशन नहीं मिलती। इन सबसे पता चलता है कि नए भर्ती हुए कर्मचारी अधिवर्षिता पेंशन, मुआवजा पेंशन, अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेंशन व अनुकंपा भत्ता आदि के लिए पात्र नहीं होंगे।
केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए एक जनवरी 2004 से नई पेंशन योजना/राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की शुरुआत की गई है। इससे सरकार द्वारा कर्मियों को प्रदान की जाने वाली सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसने कर्मचारियों के भविष्य के साथ-साथ सेवानिवृत्ति सुरक्षा (सामाजिक सुरक्षा) को भी प्रभावित किया है। योजना के तहत न्यूनतम पेंशन की गारंटी के अभाव में जीवन दांव पर लगा है। पिछले समय में पांच राज्यों के चुनाव के मौके पर कई राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में कर्मचारियों को आश्वासन दिया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो पुरानी पेंशन योजना को लागू करेंगे। इन घोषणाओं ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों में यह भावना भी जगा दी है कि केंद्र सरकार को भी अपने कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के तहत लाना चाहिए।