जिस साल बेस्ट रिजल्ट् रहा,उसे बनया रेफरेंस ईयर

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने कोरोना काल में स्टूडेंट्स को प्रमोट करने के लिए जिस मार्किंग पॉलिसी का उपयोग किया, उससे कई होनहार स्टूडेंट्स को नुकसान हुआ है। स्वयं बोर्ड ने जिस पॉलिसी के तहत मार्क्स तय किए थे, उसी के तहत कटौती करने के लिए स्कूल्स पर दबाव बनाया। बारहवीं के हजारों बच्चों के मार्क्स इसी कारण कम हो गए। यह सब पॉलिसी के उस नियम के कारण हुआ जिसमें रेफरेंस इयर से ज्यादा रिजल्ट नहीं रखने की बाध्यता तय कर दी गई। यानी पिछले सालों में स्कूलों का रिजल्ट का जो पर्सेंट रहा, उससे ज्यादा पर्सेंट में रिजल्ट नहीं आ सकता।

CBSE ने मार्किंग पॉलिसी में कहा था कि रेफरेंस इयर के हिसाब से ही स्कूल को अपना रिजल्ट रखना है। सभी स्कूल्स को अलग-अलग रेफरेंस इयर मिले थे। पिछले दो-तीन साल में जिस साल का सबसे बेहतर रिजल्ट रहा था, वो ही स्कूल का रेफरेंस इयर था। अगर किसी स्कूल का रेफरेंस इयर 2019 है तो उस स्कूल को उसी के हिसाब से अपना रिजल्ट तय करना था। अगर इस साल यानी 2021 में 2019 से भी होशियार स्टूडेंट्स है तो उसके कोई मायने नहीं रहे।

रिजल्ट तो 2019 सेशन के रिजल्ट के अनुसार ही तय करना था। ऐसे में उन स्कूल्स को बड़ी समस्या हुई, जिनके स्टूडेंट्स ने इस बार बहुत बेहतर रिजल्ट देने के लिए मेहनत की। पहले तो कोरोना काल में एग्जाम नहीं होने से इन स्टूडेंट्स को नुकसान हुआ, वहीं प्रमोट करते हुए मार्किंग में भी इनकी कटौती सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि रेफरेंस इयर में स्टूडेंट्स के मार्क्स कम थे।

इस तरह समझें नुकसान को
उदाहरण के रूप में समझा जा सकता है कि सेशन 2019 में एक स्कूल में साइंस बायो के 5 स्टूडेंट्स को ही फिजिक्स में 95 प्रतिशत से अधिक मार्क्स मिले हैं तो इस बार भी पांच स्टूडेंट्स को ही 95 से अधिक मार्क्स दिए गए। अगर ऐसे 8 स्टूडेंट्स हैं तो तीन स्टूडेंट्स के मार्क्स कम किए गए। स्कूल्स ने उन स्टूडेंट्स के मार्क्स मजबूरी में कम कर दिए, जिनके 95 या उससे ठीक आगे मार्क्स थे। कमोबेश ऐसा ही कामर्स व आर्ट्स के स्टूडेंट्स के साथ भी हुआ। स्कूल का रिजल्ट रेफरेंस इयर जितना ही रहा है।

बेस्ट रिजल्ट को बनाया रेफरेंस इयर
CBSE ने अब तक के बेस्ट रिजल्ट का ही रेफरल इयर बनाया था। पिछले कुछ सालों में जिस साल का रिजल्ट सबसे बेहतर रहा था, उसी को रेफरल इयर मानते हुए स्कूल्स काे मार्क्स देने थे। सवाल ये उठ रहा है कि किसी स्कूल का पिछले साल में सबसे बेस्ट रिजल्ट 92 प्रतिशत है तो क्या इस बार वो और भी बेस्ट होते हुए 95 प्रतिशत नहीं हो सकता था?

अब क्या होगा नुकसान
बारहवीं के होनहार स्टूडेंट्स के मार्क्स कम होने के कारण कॉलेज एडमिशन को लेकर परेशानी होगी। खासकर देश के प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमिशन बारहवीं के मार्क्स के आधार पर बनने वाली मेरिट से होता है। अब इस मेरिट में उस स्कूल के स्टूडेंट्स को लाभ मिलेगा, जिनका रिजल्ट रेफरल इयर में शानदार रहा था। उन स्टूडेंट्स के मार्क्स कम नहीं हुए, अगर किसी स्कूल के रेफरल इयर से बेहतर मार्क्स है तो उनको कम नंबर मिले।

RBSE की मार्किंग पॉलिसी से लाभ
दूसरी ओर राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) की मार्किंग पॉलिसी ज्यादा लाभदायी साबित हुई। जहां रेफरल इयर जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। सीधा और सरल नियम था कि स्टूडेंट ने पिछली दो क्लासेज में कितने मार्क्स प्राप्त किए हैं। उसका प्रतिशत निकाला और उसकी मार्कशीट में दे दो। ये बाध्यता भी नहीं थी कि स्टूडेंट का रिजल्ट इतना ही रहना चाहिए। ऐसे में स्टूडेंट्स को पिछले सालों में प्राप्त अंकों के आधार पर मार्क्स मिले। इनके पिछले दो साल में अच्छे मार्क्स थे, उन्हें अच्छे मार्क्स मिले, जिनके कम मार्क्स थे, उन्हें इस साल की मेहनत के बाद भी कम मार्क्स मिले।

गार्जियन स्कूलों से इसे समझने की कोशिश कर रहे
बीकानेर के बाफना स्कूल के सीईओ पी.एस.वोहरा का कहना है कि गार्जन तो 30+30+40 की मार्किंग को ही आधार मान रहे हैं, जोकि जो कि मीडिया के माध्यम से उनके संदर्भ में थी। अब अगर कुछ विषयों में नंबर उस हिसाब से नहीं है तो गार्जियन स्कूलों से इस चीज़ को समझने की कोशिश कर रहे हैं। हम गार्जन को समझा रहे हैं।

पॉलिसी सही है, सुप्रीम कोर्ट से एप्रुव्ड है
CBSE अजमेर रीजन के आरओ सतपाल कौर ने कहा कि यह पॉलिसी सही है, खुद सुप्रीम कोर्ट ने एप्रुव की है। अगर किसी स्टूडेंट या स्कूल को लगता है कि उनके मार्क्स कम आये हैं तो वो अगस्त में होने वाले एग्जाम में बैठ सकते हैं। CBSE ने बहुत ही तरीके से इस पॉलिसी को लागू किया है।

स्टूडें‌ट्स को नुकसान हुआ है
शिक्षा परिवार के संयोजक अनिल शर्मा ने कहा कि सीबीएसई की मार्किंग पॉलिसी से दो तरह से नुकसान हुआ है। मार्क्स ग्यारहवीं के आधार मिले, जबकि इस क्लास को स्टूडेंट्स सीरियसली नहीं लेते हैं। वहीं रेफरेंस इयर के कारण बच्चों के मार्क्स कम हो गए। न सिर्फ स्टूडेंट्स बल्कि स्कूल्स को भी नुकसान हुआ 

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