नेपाली गोरखाओं में ‘अग्निपथ’ को लेकर मचा बवाल, आईएसआई की ‘बैठक’ का खुला राज

भारतीय सेना में भर्ती के लिए शुरू की गई ‘अग्निपथ’ योजना को लेकर नेपाल में सहमति नहीं बन पा रही है। भारत ने नेपाल सरकार को सूचित किया था कि वह 25 अगस्त को ‘बुटवल’ और एक सितंबर को ‘धरान’ में गोरखा सैनिकों की भर्ती करना चाहती है। नेपाल सरकार ने अभी इस पर कोई जवाब नहीं दिया है। गत माह काठमांडू में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ के ऑपरेटिव मोहम्मद रक्साना नूर्ति द्वारा पाकिस्तानी दूतावास में भारतीय सेना से रिटायर्ड ऐसे पूर्व अधिकारी, जो नेपाल में रह रहे थे, की एक बैठक आयोजित की गई थी। बैठक का एजेंडा, ‘अग्निपथ’ को लेकर नेपाली युवाओं में गलत संदेश देना था। गोरखाओं को बतौर ‘अग्निवीर’ भर्ती होने से रोकना था। अब भारतीय सेना में ‘गोरखा’ भर्ती को लेकर पेंच फंस गया है। हालांकि गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, लंबे समय से नेपाली युवाओं की भारतीय सेना में भर्ती हो रही है। आगे भी ‘अग्निपथ’ योजना के तहत नेपाली युवाओं को भर्ती किया जाएगा।

गोरखा भर्ती के लिए नहीं निकल पा रहा सर्वमान्य हल

भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में ब्रिटिश शासन के बाद से ही भर्ती होती रही है। अब ‘अग्निवीर’ योजना को लेकर नेपाल सरकार कुछ स्पष्ट नहीं बता पा रही है। ‘बुटवल’ में गोरखा जवानों की भर्ती पर रोक लग गई है। इस मामले में दोनों देशों के बीच कोई सर्वमान्य हल निकालने का प्रयास हो रहा है। काठमांडू में नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का और भारतीय राजदूत नवीन श्रीवास्तव की बातचीत हुई है। नेपाल में कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर आवाज उठाई है। उनका कहना है कि भारत को सेना भर्ती प्रक्रिया में बदलाव करने से पहले नेपाल से बातचीत करनी चाहिए थी। आखिर चार साल के बाद ‘अग्निवीर’ कहां जाएंगे। वे बेरोजगार हो जाएंगे। कुछ समय बाद भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे की नेपाल यात्रा प्रस्तावित है। भारतीय सेना में नेपाली युवकों की भर्ती, नेपाल, भारत और ब्रिटेन सरकार के बीच हुई त्रिपक्षीय संधि का हिस्सा है। अब नेपाल के राजनीतिक दल, अग्निपथ योजना को उस संधि का उल्लंघन बता रहे हैं।

चीन-पाकिस्तान की सेना में नहीं है एक भी गोरखा

सैन्य मामलों के विशेषज्ञ और एक्स-सर्विसमैन ग्रीवांस सेल के अध्यक्ष साधू सिंह के मुताबिक, पड़ोसी मुल्क ‘अग्निवीर’ को लेकर नेपाल के युवाओं को भड़का रहे हैं। हालांकि उन्होंने ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है कि नेपाली युवक, पाकिस्तान या चीन की सेना में भर्ती हो सकते हैं। चीन और पाकिस्तान की सेना में एक भी गोरखा नहीं है। भारत को इस मामले में बहुत से गंभीरता से कदम आगे रखना चाहिए। भारतीय सेना में गोरखाओं का अपना एक इतिहास रहा है। नेपाल के बहादुर लड़ाके, भारतीय सेना ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश आर्मी का भी हिस्सा हैं। अनुशासन और वफादारी में उनका कोई मुकाबला नहीं है। भारतीय सेना में आजादी के बाद तो ब्रिटिश आर्मी में 1947 के पहले से ही ‘गोरखा’ अपनी बहादुरी, ईमानदारी और निष्ठा को साबित करते रहे हैं। भारतीय सेना के भूतपूर्व थल सेना अध्यक्ष, फील्ड मार्शल सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने कहा था, अगर कोई ये कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता तो वह झूठ बोल रहा है या गोरखा है। नेपाल का ये समझौता केवल, भारत और ब्रिटेन के साथ है। नेपाल की तरफ से उठे ये सवाल जायज हैं कि चार साल सेना की नौकरी करने के बाद गोरखाओं का क्या होगा।   

समझ नहीं आ रहा, भारत सरकार चाहती क्या है

साधू सिंह ने कहा, सेना में अग्निवीर भर्ती को लेकर भारत सरकार खुद भी स्पष्ट नहीं है। भारत में भी यह शंका जाहिर की गई थी कि चार साल के बाद अग्निवीरों का भविष्य क्या रहेगा। क्या किसी के द्वारा इनके दुरुपयोग की संभावना बनी रहेगी। कोई राजनीतिक दल या उद्योगपति, इन्हें किसी मकसद से अपना हिस्सा बना लेंगे, लोगों के जेहन में ऐसे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। भारतीय सेना में हर साल 60 हजार अधिकारी और जवान रिटायर हो रहे हैं। उनकी रिप्लेसमेंट नहीं हो पा रही। ऐसे में नेपाल को भी लगता है कि अग्निवीर योजना में गोरखाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं है। गोरखा रेजिमेंट का अपना इतिहास रहा है। बहुत से एक्स सर्विसमैन की पेंशन नेपाल में ड्रा होती है। ये भारतीय फौज का अहम हिस्सा हैं। इसने अपने शौर्य को साबित कर दिखाया है। गोरखा, गजब के लड़ाके होते हैं। इन्हें जो भी ड्यूटी या टॉस्क दिया जाता है, ये वहां से विजयी हुए बिना, वापस नहीं लौटते। इनकी वफादारी, निष्ठा और ईमानदारी का उदाहरण पेश किया जाता है।

भारतीय सेना के अलावा ब्रिटिश आर्मी में भी हैं ‘गोरखा’

भारतीय सेना के अलावा ब्रिटिश आर्मी में भी गोरखा अपनी सेवा दे रहे हैं। ब्रिटेन में शाही घराने की सुरक्षा के लिए जो दस्ता रहता है, उसमें गोरखाओं की सम्मानजनक संख्या है। वहां पर गार्ड ऑफ ऑनर में भी गोरखाओं को मौका दिया जाता है। अग्निपथ पर केंद्र सरकार को बड़ी सावधानी से कदम रखना चाहिए था। पाकिस्तानी आईएसआई तो दशकों से इस प्रयास में लगी है कि गोरखाओं का भारतीय सेना के प्रति मोहभंग हो जाए। भारत में लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, शिलांग और हिमाचल प्रदेश के सुबातु में गोरखा रेजिमेंट के बड़े सेंटर हैं। भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट हैं व 39 बटालियन हैं। इनमें लगभग 30 हजार नेपाली नागरिक शामिल हैं। ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय सेना में 11 गोरखा रेजीमेंट होती थीं। आजादी के बाद गोरखाओं की चार रेजीमेंट, ब्रिटिश सेना में चली गईं। भारतीय सेना में अब पहली, तीसरी, चौथी, पांचवी, आठवीं, नौंवी और ग्यारवीं गोरखा रेजीमेंट है। ‘आईएसआई’ ने नेपाल के जरिए अपने नापाक इरादों को अंजाम देने की योजना बनाई है।

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