खूब कर रहे हैं मुजफ्फरनगर का नाम रोशन !

दो दिन पूर्व हमने लिखा था कि जनपद‌ मुजफ्फरनगर की पुलिस अवैध असलहों का धंधा चलाने वालों की धर-पकड़ का अभियान चलाये हुए है। 3-4 दिनों के भीतर तमंचे बनाने वाली दो फैक्ट्रियां व उनके संचालक पकड़े गए हैं। अवैध हथियार बनाने और बेचने में मुजफ्फरनगर का नाम अग्रणी है। कभी इस धंधे में कैराना का नाम खूब चमकता था। मुजफ्फरनगर पुलिस का कहना है कि शहर के मिमलाना रोड पर अवैध फैक्टरी चलाने वाला शमशाद इस फन का माहिर है।

अवैध हथियार बनाने व बेचने का धंधा करने वाले अपने हुनर को मुजफ्फरनगर से बाहर भी फैला रहे हैं। गोंडा जिले के मनकापुर थाने के प्रभारी सन्तोष कुमार मिश्र ने बताया है कि जांच के दौरान एक ऐसे गिरोह को पकड़ा गया जो दिखाने के लिए फेरी लगाकर कपड़ा बेचता था लेकिन उनका असल काम अवैध हथियार बेचना था। पुलिस ने इन्हें मनकापुर रेलवे क्रॉसिंग पर पकड़ा। कपड़ों के गट्ठर में दबे अनेक देसी कट्टे- पिस्तौल बरामद हुए तो पुलिस हैरान रह‌ गई। इस गिरोह को बलरामपुर के ग्राम मद्दो भट्टा का लड्डन चलाता है और मुजफ्फरनगर के चार बदमाश उसके गैंग में शामिल हैं। इनके नाम हैं- मुजफ्फरनगर के थाना मीरापुर के ग्राम सम्भलहेडा का मौहम्मद नसीम कुरैशी, मौहम्मद तौसीम काला, नवाब अली तथा ककरौली थाना के ग्राम तेवड़ा का दानिश।

इन सबको जेल भेज दिया गया। कोर्ट-कचहरी, जमानत, मुकदमा, गवाह, छुट गये तो फिर उसी दलदल में फसेंगे। यह क्या जिंदगी है? जो हाथ इमारतें बनाते हैं, खूबसूरत कालीन, चादरें, साड़ियां बुनते हैं, ट्रैक्टर, कार, बाइक, मशीनों की मरम्मत करते हैं, गर्ज यह कि हाथों की महारथ दिखाने के हज़ार मौके हैं, उन्हें गलत रास्ते पर क्यों धकेला जाता है? क्या समाज के ठेकेदार इनका सही मार्गदर्शन नहीं कर सकते? समाज के करोड़ों लोग हाथ की कारीगरी, कलाकौशल के जरिये हक़ हलाल की रोटी कमाते-खाते हैं। फिर इन्हें चन्द लोग अपने स्वार्थ के लिए क्यों इस्तेमाल करते हैं?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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